क्या भगवान राम के वियोग में भरत ने 14 साल तपस्या की थी?

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क्या भगवान राम के वियोग में भरत ने 14 साल तपस्या की थी?

सारांश

अयोध्या में दीपावली का पर्व अद्भुत होता है। इस मौके पर भरत की 14 साल की तपस्या का अद्भुत किस्सा हमें उनकी भक्ति और त्याग का पाठ पढ़ाता है। जानिए कैसे भरत ने अपने भाई राम की याद में अयोध्या का शासन संभाला।

Key Takeaways

  • भगवान राम के प्रति भरत का प्रेम अद्वितीय है।
  • भरत कुंड की आध्यात्मिक मान्यता महत्वपूर्ण है।
  • दीपावली पर अयोध्या की रौनक अद्भुत होती है।
  • वट वृक्ष की लताएं भरत की तपस्या की गवाही देती हैं।
  • इस स्थल पर भक्तों की संख्या हर साल बढ़ती है।

नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सोमवार को देशभर में दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है और इस अवसर पर अयोध्या की रौनक स्वर्ग में बने महल जैसी होती है, जो दीपों से रोशन हो जाती है।

हर साल अयोध्यावासी दीपावली पर भगवान राम के स्वागत हेतु शहर को दीपों से सजाते हैं, लेकिन अयोध्या में एक खास स्थान है, जहां भगवान राम के छोटे भाई भरत ने 14 वर्षों तक कठिन तपस्या की थी और वहीं से अयोध्या का शासन चलाया था।

त्रेतायुग में, मां कैकयी के कहने पर भगवान राम ने भरत को सिंहासन सौंपते हुए वनवास स्वीकार किया था। उस समय सभी की आंखों में आंसू थे, लेकिन भरत का मन सबसे अधिक व्यथित था। भरत के मन में राज्य का राजा बनने की कोई लालसा नहीं थी, वह अपने भाई को अयोध्या पर राज करते हुए देखना चाहते थे।

भगवान राम के वनवास के बाद, भरत ने अयोध्या से दूर नंदीग्राम में अपना आश्रय लिया और 14 वर्षों तक भगवान राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर अयोध्या पर शासन किया।

नंदीग्राम में बने भरत कुंड में भरत ने वियोग में 14 वर्षों तक कड़ी तपस्या की थी। यह कुंड अयोध्या से थोड़ी दूर स्थित है और इसकी बहुत मान्यता है। यहां एक सरोवर कुंड है, जहां लोग स्नान और अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं।

भरत कुंड में 27 तीर्थों का जल है, जिसके कारण इसकी मान्यता और भी बढ़ जाती है। मान्यता है कि जब भगवान राम अयोध्या लौटे, तो इसी जल से उनका अभिषेक किया गया था। वहां एक छोटे से मंदिर में भगवान राम की चरण पादुका को चिन्ह स्वरूप विराजित किया गया है।

इसके अतिरिक्त, मंदिर के प्रांगण में एक वट वृक्ष भी है। कहा जाता है कि इसी वृक्ष के नीचे बैठकर भरत ने 14 वर्षों तक तप किया था, और इसलिए वट वृक्ष की लताएं कभी जमीन को नहीं छूती हैं। यहीं बैठकर भरत ने भगवान हनुमान को राक्षस समझकर बाण चलाया था, जिससे वह मूर्छित हो गए थे। मूर्छित पड़े हनुमान जी को वट वृक्ष की लताओं ने उठाया और जमीन पर रखा। तब से यह माना जाता है कि लताएं कभी जमीन को नहीं छूतीं।

दीपावली के अवसर पर नंदीग्राम में बने भरत के तपस्या स्थल पर विशेष पूजा का आयोजन होता है। भक्त दूर-दूर से भगवान राम और भरत के निश्छल प्रेम को दर्शाते मंदिर को देखने के लिए आते हैं।

Point of View

यह महत्वपूर्ण है कि हम भरत की तपस्या और त्याग को याद करें। उनका समर्पण न केवल उनके भाई राम के प्रति, बल्कि अयोध्या और भारतीय संस्कृति के प्रति भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह हमें यह सिखाता है कि सच्चे प्रेम और निस्वार्थ सेवा का क्या अर्थ होता है।
NationPress
20/10/2025

Frequently Asked Questions

क्या भरत ने 14 साल तप किया?
जी हां, भरत ने भगवान राम के वनवास के दौरान 14 वर्षों तक तप किया।
भरत कुंड का क्या महत्व है?
भरत कुंड में 27 तीर्थों का जल है, और इसे भगवान राम के अभिषेक का स्थान माना जाता है।
नंदीग्राम का क्या महत्व है?
नंदीग्राम में भरत ने भगवान राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर अयोध्या का शासन किया।
दीपावली पर नंदीग्राम में क्या होता है?
दीपावली पर नंदीग्राम में भरत के तपस्या स्थल पर विशेष पूजा का आयोजन होता है।
क्या वट वृक्ष की लताएं जमीन को छूती हैं?
माना जाता है कि वट वृक्ष की लताएं कभी जमीन को नहीं छूती हैं, जो भरत की तपस्या का प्रतीक है।