क्या भारत का 'मिशन मून' चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हुआ था?
सारांश
Key Takeaways
- चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी की खोज की।
- भारत की अंतरिक्ष यात्रा ने वैश्विक पहचान बनाई।
- इस मिशन ने भविष्य के चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
नई दिल्ली, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। अंतरिक्ष सिर्फ एक गंतव्य नहीं है। यह जिज्ञासा, साहस और सामूहिक प्रगति का प्रतीक है। भारत की अंतरिक्ष यात्रा इसी उत्साह को दर्शाती है। 1963 में एक छोटा रॉकेट लॉन्च करने से लेकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बनने तक, भारत की यह यात्रा बेहद शानदार रही है। इन ऐतिहासिक उपलब्धियों में 'चंद्रयान मिशन' बेहद महत्वपूर्ण है, जिसने दुनिया को बताया कि चांद पर पानी है।
इसरो ने लगभग 17 वर्ष पहले चंद्रयान-1 को जब श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से छोड़ा था, तो केवल करोड़ों भारतवासियों में गर्व नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया एक नई उम्मीद की नजरों से देख रही थी। उम्मीद थी एक ऐसे ग्रह को खोजने की, जहां हवा-पानी हो और इंसानों की नई दुनिया बसी जा सके।
इसी खोज में भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रमा की ओर अपनी पहली उड़ान भरी। चंद्रयान-1, चंद्रमा की परिक्रमा करने और सतह पर एक प्रभावक (इम्पैक्टर) भेजने के लिए लॉन्च किया गया था। वैज्ञानिक लक्ष्यों में चंद्रमा के रासायनिक, खनिज और फोटो-भूवैज्ञानिक मैपिंग का अध्ययन शामिल था।
चंद्रयान-1 को 17.9 डिग्री झुकाव पर पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा गया और फिर इसके इंजन को कई बार चलाकर इसे धीरे-धीरे ऊंची कक्षा में पहुंचाया गया।
चंद्रमा की ओर बढ़ते कदम भारत के लिए एक नई गाथा लिख रहे थे। इस सफर का सबसे महत्वपूर्ण दिन 8 नवंबर 2008 था, जब धरती से भेजा गया चंद्रयान एक ग्रह से दूसरे ग्रह के परिवेश में प्रवेश कर रहा था। कई महत्वपूर्ण मिशन प्रक्रियाओं और प्रचालनों के माध्यम से चंद्रयान-1 को 8 नवंबर को शाम 5:05 बजे चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया।
8 नवंबर और 12 नवंबर के बीच चंद्रयान-1 की कक्षा धीरे-धीरे कम की गई, जिससे यह अंततः चंद्र सतह से लगभग 62 मील (100 किलोमीटर) ऊपर अपनी परिचालन ध्रुवीय कक्षा में पहुंच गया।
14 नवंबर 2008 को चंद्रयान-1 ने एक छोटा यान मून इम्पैक्ट प्रोब छोड़ा। यह भारत का पहला उपकरण था, जिसने चंद्र सतह पर उतरने का प्रयास किया। इसी प्रोब से मिले आंकड़ों से चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी के शुरुआती संकेत मिले थे।
मिशन के कुछ महीनों बाद अंतरिक्ष यान को अत्यधिक हीट की समस्या का सामना करना पड़ा। तापमान को नियंत्रित रखने के लिए इसकी कक्षा को 200 किलोमीटर ऊँचाई पर कर दिया गया। बाद में इसके स्टार सेंसर (जो दिशा तय करते हैं) खराब हो गए, लेकिन वैज्ञानिकों ने जाइरोस्कोप की मदद से मिशन जारी रखा।
लगभग दस महीने के सफल संचालन के बाद 28 अगस्त 2009 को चंद्रयान-1 से संपर्क टूट गया। यह अपने दो साल के निर्धारित मिशन अवधि से पहले ही समाप्त हो गया, लेकिन इसरो ने बताया कि तब तक 95 प्रतिशत मिशन लक्ष्य पूरे हो चुके थे।
चंद्रयान-1 की सबसे बड़ी उपलब्धि रही चंद्रमा पर पानी का पता लगाना। इस ऐतिहासिक मिशन ने भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल किया, जिन्होंने सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में उपग्रह भेजे।
चंद्रयान-1 ने न केवल भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को विश्व स्तर पर साबित किया, बल्कि चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसे आगे के अभियानों की राह भी तैयार की।