क्या आप जानते हैं भारत की पहली महिला डॉक्टर के बारे में, जिन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा और स्वतंत्रता के नए रास्ते खोले?

सारांश
Key Takeaways
- डॉ. कादम्बिनी गांगुली ने भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उन्होंने पितृसत्ता को चुनौती देकर एक नई राह बनाई।
- कादम्बिनी गांगुली पहली महिला चिकित्सक थीं जिन्होंने चिकित्सा का अभ्यास किया।
- उन्होंने सामाजिक सुधार आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की।
- उनका जीवन आज भी लाखों महिलाओं को प्रेरित करता है।
नई दिल्ली, 17 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जब 19वीं सदी का भारत स्त्री शिक्षा को पाप समझता था और महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर नहीं निकलती थीं। उस समय, एक साहसी महिला ने न केवल पितृसत्ता को चुनौती दी, बल्कि अपने साहस, बुद्धिमत्ता और कर्मठता से इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ी। उनका नाम है डॉ. कादम्बिनी गांगुली, जो भारत की पहली महिला स्नातक, पहली महिला चिकित्सक और एक अद्वितीय समाज सुधारिका थीं। उनका जन्म एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति के पुनर्जागरण की शुरुआत है। 18 जुलाई का दिन उनकी जयंती मनाने से कहीं बढ़कर उस विचार और संघर्ष को सम्मान देने का क्षण है, जिसने भारत में महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की नींव रखी।
कादम्बिनी गांगुली सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक क्रांति थीं, जो आज भी हर उस लड़की को प्रेरणा देती हैं, जो सपनों को सीमाओं से बड़ा मानती हैं। उन्होंने पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में डिग्री प्राप्त की और चिकित्सा का अभ्यास भी किया। 19वीं शताब्दी की उस रूढ़िवादी और पुरुष प्रधान दुनिया में, उनके द्वारा प्रशस्त किया गया मार्ग, आने वाली पीढ़ियों के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल दिया।
कादम्बिनी का जन्म 18 जुलाई 1861 को बिहार के भागलपुर में हुआ। वे एक बंगाली ब्रह्म समाजी परिवार से थीं, जहाँ उनके पिता ब्रजकिशोर बसु एक शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे। उनका परिवार बाल विवाह, सती प्रथा और स्त्रियों पर अत्याचार के खिलाफ खड़ा था। कादम्बिनी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के बेथ्यून कॉलेज में प्राप्त की, उस समय जब महिलाओं की शिक्षा को सामाजिक अपराध माना जाता था। लेकिन, तमाम सामाजिक विरोधों के बावजूद 1883 में उन्होंने बीए की डिग्री प्राप्त की और अपने समकालीन चंद्रमुखी बसु के साथ ब्रिटिश साम्राज्य की पहली महिला स्नातक बनीं।
कादम्बिनी ने कोलकाता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया, जो केवल पुरुष छात्रों के लिए आरक्षित था। उनके असाधारण हौसले और पति द्वारकानाथ गांगुली के समर्थन ने एक नया इतिहास रच दिया। 1886 में उन्होंने ग्रेजुएट ऑफ बंगाल मेडिकल कॉलेज (जीबीएमसी) की डिग्री प्राप्त की और इस तरह भारत की पहली महिला बनीं जिसने चिकित्सकीय प्रैक्टिस भी की।
कादम्बिनी का समर्पण केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं था। उन्होंने कोलकाता के लेडी डफरिन हॉस्पिटल में सेवा दी, जो महिलाओं की चिकित्सा के लिए स्थापित था। वहां भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई और 1893 में इंग्लैंड चली गईं, जहाँ उन्होंने विश्वप्रसिद्ध मेडिकल संस्थानों से डिग्रियां प्राप्त कीं। वे ब्रह्म समाज की सक्रिय सदस्य थीं और महिला शिक्षा, कानूनी अधिकारों और सामाजिक बराबरी के लिए संघर्ष करती रहीं।
डॉ. गांगुली एक चिकित्सक ही नहीं, बल्कि एक राष्ट्रभक्त और राजनीतिज्ञ भी थीं। वे 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पांचवें अधिवेशन की छह महिला प्रतिनिधियों में से एक थीं। उनके जीवन में कई चुनौतियाँ थीं, लेकिन उन्होंने हर बाधा को पार किया।
3 अक्टूबर 1923 को उनका निधन हुआ, लेकिन डॉ. कादम्बिनी गांगुली की सोच, संघर्ष और योगदान आज भी जीवित हैं। उन्होंने भारतीय महिलाओं के लिए ऐसे रास्ते बनाए जिन्हें आज भी हजारों लड़कियां आत्मविश्वास से चुन रही हैं।