क्या भारत की समुद्री शक्ति उसके बंदरगाहों, जहाजों और मानव संसाधनों में निहित है?: मनसुख मंडाविया
सारांश
Key Takeaways
- समुद्री मानव पूंजी का विकास आवश्यक है।
- युवाओं को वैश्विक स्तर पर तैयार करना चाहिए।
- आधुनिक तकनीकों का उपयोग बढ़ाना होगा।
- लैंगिक समानता को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
- भारत को अपनी समुद्री प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना होगा।
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने गुरुवार को भारत समुद्री सप्ताह (आईएमडब्ल्यू) 2025 के दौरान आयोजित जीएमआईएस समुद्री मानव पूंजी सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। मुंबई के बॉम्बे प्रदर्शनी केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने 'भविष्य की दिशा: एक आधुनिक समुद्री कार्यबल का निर्माण' विषय पर अपने विचार साझा किए।
यह सत्र वैश्विक समुद्री नवाचार शिखर सम्मेलन (जीएमआईएस) का हिस्सा था। इसका उद्देश्य नौवहन, बंदरगाह और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में तेजी से हो रहे विस्तार के अनुरूप भारत में एक आधुनिक, कुशल और विश्वस्तरीय समुद्री कार्यबल तैयार करने की रणनीति पर विचार करना था।
डॉ. मंडाविया ने कहा कि भारत की समुद्री शक्ति उसके बंदरगाहों और जहाजों के साथ-साथ उसके मानव संसाधनों में भी निहित है। उन्होंने कहा कि समुद्री उद्योग को केवल जहाज नहीं, बल्कि ऐसे युवाओं का निर्माण करना है जो वैश्विक स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करें। आने वाला युग भारत का है। हमारी 35 प्रतिशत युवा आबादी हमें एक वैश्विक समुद्री नेता बनने की दिशा में अग्रसर करेगी।
उन्होंने यह भी बताया कि सरकार का लक्ष्य है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), डिजिटलीकरण, स्वचालन और हरित ईंधन जैसी आधुनिक तकनीकों को समुद्री कौशल विकास कार्यक्रमों में शामिल किया जाए।
उन्होंने उद्योग जगत, शैक्षणिक संस्थानों और प्रशिक्षण केंद्रों से आग्रह किया कि वे मिलकर युवाओं को भविष्य की जरूरतों के अनुरूप तैयार करें।
डॉ. मंडाविया ने कहा कि 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में हम अपनी गहरी समुद्री परंपरा से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ रहे हैं। भारत अपनी समुद्री प्रतिष्ठा को फिर से प्राप्त करेगा।
इस अवसर पर नौवहन महानिदेशक श्याम जगन्नाथन ने भी संबोधित किया। उन्होंने बताया कि भारत की वैश्विक नाविकों में वर्तमान हिस्सेदारी 12 प्रतिशत है, जिसे 2030 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए भारत में प्रशिक्षण क्षमता और अंतरराष्ट्रीय नियुक्तियों पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
उन्होंने भारतीय नाविकों के लिए डिजिटल प्रमाणन प्रणाली की घोषणा की, जो फरवरी 2026 तक लागू होगी। साथ ही, दो नई पहल ‘सागर में सम्मान’ (लैंगिक समावेशन को बढ़ावा देने के लिए) और ‘सागर में योग’ (नाविकों के स्वास्थ्य और प्रशिक्षण के लिए) भी शुरू कीं।
इस सत्र के दौरान भारत की पहली महिला समुद्री पेशेवरों कैप्टन, चीफ इंजीनियर, पायलट और नौसेना आर्किटेक्ट को सम्मानित किया गया। यह सम्मान समुद्री क्षेत्र में लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
इसके बाद आयोजित दो उच्च-स्तरीय पैनल चर्चाओं में जर्मन मैरीटाइम सेंटर, इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग, द इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन इंजीनियर्स इंडिया, सिनर्जी मरीन ग्रुप और एमएएसएसए के विशेषज्ञों ने भाग लिया। चर्चाओं में समुद्री रोजगार के भविष्य, डिजिटल कौशल, हरित नौवहन और वैश्विक प्रतिभा गतिशीलता जैसे विषयों पर गहन विमर्श हुआ।
कार्यक्रम का समापन सम्मान समारोह और धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि भारत का समुद्री परिवर्तन तभी सफल होगा, जब मानव पूंजी विकास को समानांतर प्राथमिकता दी जाए।
सत्र के निष्कर्ष में यह साझा दृष्टिकोण सामने आया कि 2047 तक भारत का लक्ष्य केवल एक समुद्री महाशक्ति बनना नहीं है, बल्कि विश्व को कुशल समुद्री पेशेवरों का सबसे बड़ा प्रदाता बनना है, जो वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था में सतत और समावेशी विकास को आगे बढ़ाएगा।