क्या भोपाल त्रासदी में यात्रियों की जान बचाने वाले रेल कर्मियों ने अपनी जान गंवाई?

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क्या भोपाल त्रासदी में यात्रियों की जान बचाने वाले रेल कर्मियों ने अपनी जान गंवाई?

सारांश

भोपाल गैस त्रासदी ने न केवल हजारों जिंदगियों को प्रभावित किया बल्कि रेल कर्मियों के साहस की दास्तान भी सुनाई है। जानिए कैसे इन कर्मियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना यात्रियों की जान बचाई।

Key Takeaways

  • भोपाल गैस त्रासदी ने हजारों लोगों की जिंदगियों को प्रभावित किया।
  • रेल कर्मियों ने साहस का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • शहीद कर्मचारियों की याद में स्मारक का निर्माण किया गया है।

भोपाल, 3 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 1984 में हुए गैस त्रासदी के दौरान रेल कर्मियों ने अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया था और कई यात्रियों की जान बचाने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल दिया था। डीआरएम पंकज त्यागी ने शहीद कर्मचारियों के स्मारक पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को घटित यह गैस त्रासदी विश्व की सबसे भयावह औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक मानी जाती है। इस त्रासदी में शहीद एवं दिवंगत सभी रेल कर्मचारियों के लिए समर्पित भोपाल स्टेशन पर स्थापित स्मारक पर डीआरएम पंकज त्यागी सहित अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों ने पुष्प अर्पित कर मौन रखा और श्रद्धांजलि दी।

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस के रिसाव ने हजारों लोगों की जान ली और लाखों लोग प्रभावित हुए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में 3,787 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि अन्य आकलनों के अनुसार लगभग 8,000 लोग दो सप्ताह के भीतर और लगभग 8,000 लोग गैस रिसाव से संबंधित बीमारियों के कारण मारे गए। हादसे के समय पूरा शहर भय और अफरातफरी में था। भोपाल स्टेशन पर पदस्थ स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे और उनके साथ 44 रेल कर्मियों ने मानवता की सेवा और अपने कर्तव्य का ऐसा अनुपम उदाहरण पेश किया, जो दुर्लभ है।

जहरीली गैस से प्रभावित वातावरण में मुंह पर कपड़ा बांधकर ये सभी कर्मचारी ड्यूटी पर बने रहे, ताकि बीना और इटारसी की दिशा से आने वाली ट्रेनों को भोपाल स्टेशन पर प्रवेश से रोका जा सके। स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे उसी रात शहीद हो गए, जबकि बाकी 44 रेल कर्मियों में से कई ने एक सप्ताह के भीतर और कुछ ने वर्षों बाद अपने प्राण त्याग दिए। इन सभी 45 अमर रेल-वीरों की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के उद्देश्य से भोपाल स्टेशन परिसर में 'भोपाल गैस त्रासदी रेलकर्मी स्मारक' का निर्माण किया गया है, जिसमें सभी शहीद और दिवंगत कर्मचारियों के नाम अंकित हैं। यह स्मारक न केवल उनके बलिदान का प्रतीक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को कर्तव्य, मानव सेवा और साहस के सर्वोच्च आदर्शों का संदेश भी देता है।

Point of View

बल्कि यह मानवता की परीक्षा भी है। रेल कर्मियों ने जो साहस और समर्पण दिखाया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। हमें इस बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए।
NationPress
11/12/2025

Frequently Asked Questions

भोपाल गैस त्रासदी कब हुई थी?
भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुई थी।
इस त्रासदी में कितने लोग मारे गए?
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में 3,787 लोगों की मृत्यु हुई थी।
रेल कर्मियों ने कैसे मदद की?
रेल कर्मियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना यात्रियों को सुरक्षित रखने के लिए काम किया।
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