क्या समस्तीपुर विधानसभा में फिर होगी कांटे की टक्कर? बिहार चुनाव की बड़ी परीक्षा!

सारांश
Key Takeaways
- समस्तीपुर विधानसभा की सीट की पहचान कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी है।
- यह क्षेत्र जातिगत समीकरणों पर निर्भर है।
- 2020 के चुनाव में राजद की जीत का अंतर लगभग 4,714 वोट था।
- समस्तीपुर की भौगोलिक स्थिति इसे एक महत्वपूर्ण रेल कनेक्टिविटी केंद्र बनाती है।
- यहां की मुख्य भाषाएं हिंदी और मैथिली हैं।
पटना, 16 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार का समस्तीपुर जिला केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह महान समाजवादियों की कर्मभूमि और एक प्राचीन कवि की कहानी का गवाह रहा है। उत्तर बिहार में रेल कनेक्टिविटी का यह केंद्र, अपनी राजनीतिक विरासत और ऐतिहासिक घटनाओं के कारण हमेशा चर्चा का विषय रहा है।
समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र एक ऐसा राजनीतिक मंच है, जहां हर चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिलती है। वर्तमान में यहां राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का कब्जा है।
समस्तीपुर विधानसभा सीट की पहचान महान समाजवादी नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी है। उन्होंने 1980 से 1985 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के उम्मीदवार मो. अख्तरुल इस्लाम शाहिन ने एक बार फिर यह सीट जीती। यह उनकी लगातार तीसरी जीत थी। उन्होंने जदयू की उम्मीदवार अश्वमेध देवी को हराया, लेकिन जीत का अंतर बहुत कम था।
शाहिन 2010 से इस सीट पर विधायक हैं। 2015 में भी उन्होंने भाजपा की रेणु कुमारी को बड़े अंतर से मात दी थी। हालांकि, 2000 से 2010 तक सीट का प्रतिनिधित्व कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर (जदयू) ने किया था। 1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 16 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस ने तीन बार जीत हासिल की। लेकिन असली दबदबा हमेशा समाजवादी पार्टियों का रहा है।
समस्तीपुर विधानसभा का चुनावी गणित जातिगत समीकरणों पर भी निर्भर करता है। इस सीट पर मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या सबसे अधिक है, जो राजद का मुख्य आधार माने जाते हैं। इसके अलावा, ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की संख्या भी अच्छी है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं।
पिछले दो चुनावों में राजद की जीत का अंतर लगातार घट रहा है। 2015 में शाहिन की जीत का अंतर 31,000 वोटों से अधिक था, जो 2020 में घटकर मात्र 4,714 वोटों पर आ गया। यह साफ दिखाता है कि सीट पर मुकाबला कितना कड़ा होता जा रहा है।
समस्तीपुर जिला भौगोलिक रूप से उत्तर में बागमती नदी, पश्चिम में वैशाली और मुजफ्फरपुर, दक्षिण में गंगा और पूर्व में बेगूसराय व खगड़िया से घिरा है। यह पूर्वी मध्य रेलवे का मंडल मुख्यालय है और पटना, कोलकाता, दिल्ली जैसे औद्योगिक शहरों से रेल द्वारा सीधा जुड़ा हुआ है। यहां की मुख्य भाषाएं हिंदी और मैथिली हैं।
महान कवि और शिवभक्त विद्यापति ने अपने जीवन का अंतिम समय इसी जिले के विद्यापतिनगर में बिताया।
2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर ने एक दुखद घटना देखी। तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या स्थानीय रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट में हुई थी। 39 साल तक चले लंबे मुकदमे के बाद चार लोगों को दोषी ठहराया गया। यह घटना आज भी भारत की सबसे रहस्यमय राजनीतिक हत्याओं में से एक मानी जाती है।
समस्तीपुर आज भी अपनी राजनीतिक विरासत, कवियों की गाथाओं और रेलवे की धड़कन के साथ बिहार के मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए यह सीट एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुकी है।