क्या भारत के अधिकार ब्रिटेन ट्रेड डील से सुरक्षित हैं, कंपल्सरी लाइसेंसिंग पर कोई रोक नहीं?
सारांश
Key Takeaways
- कंपल्सरी लाइसेंसिंग के अधिकार सुरक्षित हैं।
- जनहित और स्वास्थ्य आपात स्थितियों में दवाओं के लिए लाइसेंस जारी करने की स्वतंत्रता।
- ब्रिटेन के सरकारी खरीद बाजार में बिना भेदभाव की पहुंच।
- भारतीय कंपनियों को बढ़ावा देने वाले प्रावधान।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत छूटों का उपयोग।
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत और ब्रिटेन के बीच हुए व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (सीईटीए) से भारत के कंपल्सरी लाइसेंसिंग के अधिकारों पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं लगाई जाएगी। यह जानकारी सरकार द्वारा दी गई है।
यह समझौता भारत को जनहित और सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित मामलों में पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है। विशेष रूप से, किसी स्वास्थ्य आपात स्थिति में, भारत अपने कानून के अनुसार दवाओं के लिए कंपल्सरी लाइसेंस जारी कर सकता है।
सरकार के अनुसार, इस समझौते में ऐसे मजबूत प्रावधान शामिल किए गए हैं, जो भारत की नीतिगत स्वतंत्रता को पूरी तरह से सुरक्षित रखते हैं। सीईटीए में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत और ब्रिटेन दोनों को बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापारिक पहलू (टीआरआईपीएस) समझौते के तहत मिलने वाली सभी छूटों का उपयोग करने का अधिकार रहेगा। इसमें अनुच्छेद 31 और 31बीआईएस के तहत कंपल्सरी लाइसेंस जारी करने का अधिकार भी शामिल है। इससे भारत बिना किसी अतिरिक्त शर्त के जनहित में फैसले ले सकता है।
राज्यसभा में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने बताया कि भारत के पेटेंट एक्ट 1970 की धारा 84 (सामान्य कंपल्सरी लाइसेंस) और धारा 92 (जन स्वास्थ्य आपात स्थिति में कंपल्सरी लाइसेंस) पूरी तरह से लागू रहेंगी। इस समझौते के चलते इन कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव या कमजोरी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समझौते में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो कंपल्सरी लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को धीमा करे या उस पर अतिरिक्त शर्तें लगाए।
इस ट्रेड समझौते के तहत भारत को ब्रिटेन के सरकारी खरीद बाजार में बिना भेदभाव के पहुंच मिलेगी, जिसकी सालाना कीमत करीब 90 अरब पाउंड (करीब 122 अरब डॉलर) है। इसमें ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) जैसी बड़ी संस्थाएं भी शामिल हैं। इससे मुख्य रूप से आईटी, फार्मा और सेवा क्षेत्र की भारतीय कंपनियों को बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है। सरकार का कहना है कि सीमित और नियंत्रित दायरे में विदेशी कंपनियों को सरकारी परियोजनाओं में भाग लेने की अनुमति देने से कंपटीशन बढ़ेगा। इससे लागत कम होगी, गुणवत्ता बेहतर होगी और नई तकनीकों को अपनाने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा, यह पहली बार है जब ब्रिटेन ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सरकारी खरीद समझौते और अपने अन्य मुक्त व्यापार समझौतों के कुछ सख्त प्रावधानों में ढील देने पर सहमति जताई है। इससे भारत को इस समझौते के तहत अतिरिक्त लाभ मिलने की संभावना है।
-- राष्ट्र प्रेस
दुर्गेश बहादुर/एबीएस