क्या सीबीआई ने आठ करोड़ के बैंक धोखाधड़ी मामले में फरार आरोपी को गिरफ्तार किया?

सारांश
Key Takeaways
- सीबीआई की मेहनत से फरार अपराधियों को पकड़ा जा सकता है।
- तकनीक का उपयोग न्याय के लिए महत्वपूर्ण है।
- आरोपियों ने पहचान बदलने की कोशिश की थी।
- बैंक धोखाधड़ी के मामलों में सख्त कार्रवाई आवश्यक है।
- जांच अधिकारियों के प्रयासों की सराहना करें।
नई दिल्ली, 17 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने आठ करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में लंबे समय से फरार चल रहे घोषित अपराधी मणि एम शेखर को पकड़ने में सफलता हासिल की है।
1 अगस्त 2006 को सीबीआई ने बीएसएफबी बेंगलुरु में रामानुजम मुथुरामलिंगम शेखर उर्फ आर.एम. शेखर, मेसर्स इंडो मार्क्स प्राइवेट लिमिटेड और मणि एम. शेखर, मेसर्स इंडो मार्क्स एंड बीटीसी होम प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ मामला दायर किया था। आरोप है कि उन्होंने 2002 से 2005 के बीच भारतीय स्टेट बैंक, ओवरसीज शाखा, बेंगलुरु को 8 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की।
जांच के बाद मामले में आरोप पत्र 10 दिसंबर 2007 को पेश किया गया। दोनों अभियुक्त अदालत में उपस्थित नहीं हुए और न ही समन का उत्तर दिया। इस कारण से उन्हें 27 फरवरी 2009 को अपराधी घोषित किया गया।
सालों तक प्रयास करने के बावजूद इन फरार आरोपियों का पता नहीं चल पाया था, जिसके चलते सीबीआई ने 50,000 रुपये का इनाम घोषित किया। जब अन्य सह-आरोपियों पर मुकदमा चला और उन्हें बरी कर दिया गया, इन दोनों फरार आरोपियों के खिलाफ मामला लंबित रहा।
आरोपियों ने अपनी पहचान बदलकर कृष्ण कुमार गुप्ता (पति) और गीता कृष्ण कुमार गुप्ता (पत्नी) रख ली थी। उन्होंने अपने पुराने केवाईसी विवरण का उपयोग नहीं किया और मामले से पहले ही अपना मोबाइल नंबर, ईमेल, और पैन नंबर बदल लिया।
सीबीआई ने इन भगोड़ों के डिजिटल फुटप्रिंट्स का पता लगाने के लिए इमेज सर्च का उपयोग किया। इस तकनीक के माध्यम से इंदौर, मध्य प्रदेश में इनकी पहचान हुई। सीबीआई की टीम ने सावधानीपूर्वक क्षेत्रीय सत्यापन के बाद आरोपियों का पता लगाया, जहां वे फर्जी पहचान के साथ रह रहे थे।
तलाशी के दौरान पता चला कि एक आरोपी रामानुजम मुथुरामलिंगम शेखर की 2008 में ही (नई पहचान के साथ) मृत्यु हो चुकी थी। मणि एम. शेखर को 12 अगस्त 2025 को गिरफ्तार कर बेंगलुरु की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें आगे की सुनवाई के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। लगभग दो दशकों से फरार चल रहा आरोपी अब कानून की चपेट में है।
90 प्रतिशत से अधिक फोटो मिलान के साथ मेज सर्च टूल्स ने उनकी झूठी पहचान के बावजूद उनकी सटीक पहचान की। यह मामला इस बात का प्रमाण है कि कैसे तकनीक-संचालित प्लेटफ़ॉर्म जमीनी स्तर पर जांच करने वाले अधिकारियों के प्रयासों के साथ मिलकर लंबे समय से फरार अपराधियों को पकड़ने में मदद कर सकते हैं।