क्या चिकनगुनिया के बाद घुटनों में दर्द बढ़ गया है? आयुर्वेदिक उपचार से मिलेगा समाधान

सारांश
Key Takeaways
- चिकनगुनिया के बाद घुटनों में दर्द सामान्य है।
- आयुर्वेदिक उपाय जैसे अश्वगंधा और हल्दी लाभकारी होते हैं।
- घरेलू उपायों में हल्दी वाला दूध और गुनगुने पानी से सिकाई शामिल है।
- योग और हल्की व्यायाम गतिविधियाँ मददगार हैं।
- स्वास्थ्यवर्धक आहार का पालन करना चाहिए।
नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। चिकनगुनिया बुखार के बाद घुटनों और जोड़ों में दर्द होना एक सामान्य समस्या है। इसे पोस्ट चिकनगुनिया अर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है। चिकनगुनिया एक वायरल बुखार है, जो एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। आयुर्वेद में इसे सन्निपात ज्वर या आमज ज्वर से जोड़ा गया है।
इस दर्द का मुख्य कारण वायरस होता है। चिकनगुनिया वायरस जोड़ों में सूजन उत्पन्न करता है। यह सूजन धीरे-धीरे जोड़ों में दर्द, अकड़न और हल्की सूजन का कारण बनती है। यह समस्या कुछ हफ्तों से लेकर महीनों तक बनी रह सकती है। सामान्य लक्षणों में घुटनों, टखनों, कोहनियों और कलाई में दर्द, सुबह उठते समय जोड़ अकड़ जाना, हल्की सूजन, कमजोरी और थकान शामिल हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, यह समस्या जोड़शूल के समान होती है, जिसमें वात और आम दोष की वृद्धि के कारण दर्द होता है। इसे कम करने के लिए आयुर्वेद में कई हर्बल उपाय सुझाए गए हैं, जैसे अश्वगंधा जो जोड़ को मजबूत करती है, गुग्गुलु और निरगुंडी सूजन और दर्द को कम करते हैं, जबकि हल्दी प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी है।
घरेलू उपायों में हल्दी वाला दूध रात को पीना, गुनगुना पानी अधिक लेना, ठंडी चीजों से परहेज करना और तिल या सरसों के तेल में हल्दी डालकर हल्की मालिश करना लाभकारी होता है। इसके अलावा, गुनगुने पानी से सिकाई करने से भी जोड़ों का दर्द कम होता है।
योग और हल्की व्यायाम गतिविधियां भी मदद करती हैं। जैसे ताड़ासन, गोमुखासन, त्रिकोणासन जोड़ को मजबूत करते हैं और स्ट्रेचिंग से दर्द और अकड़न कम होती है। प्राणायाम जैसी तकनीकें जैसे अनुलोम-विलोम और भ्रामरी शरीर में ऊर्जा बनाए रखती हैं।
आहार में हल्का और पचने में आसान भोजन लेना चाहिए। अदरक, लहसुन, हल्दी और मेथी दाना रोज शामिल करें। मांसाहार, फास्ट फूड, ठंडी और तैलीय चीजें न लें।
आयुर्वेद में ऐसे दर्द में बस्ति कर्म, अभ्यंग (तेल मालिश) और स्वेदन (स्टीम थैरेपी) बेहद लाभकारी बताए गए हैं। आधुनिक चिकित्सा में भी इसे सपोर्टिव थेरेपी माना जाता है। सही देखभाल और नियमित उपायों से चिकनगुनिया के बाद जोड़ों का दर्द काफी हद तक कम किया जा सकता है।