क्या चीन-पाकिस्तान से बढ़ते साइबर खतरों पर विशेषज्ञों का सचेत होना जरूरी है?

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क्या चीन-पाकिस्तान से बढ़ते साइबर खतरों पर विशेषज्ञों का सचेत होना जरूरी है?

सारांश

क्या आपको पता है कि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से बढ़ते साइबर खतरे के कारण भारत को अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है? विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर चर्चा की और सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

Key Takeaways

  • साइबर सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता है।
  • चीन-पाकिस्तान से बढ़ते खतरे पर ध्यान देना चाहिए।
  • आधुनिक तकनीकों का उपयोग फॉरेंसिक में सहायक है।
  • वैश्विक सहयोग से साइबर क्राइम का सामना किया जा सकता है।
  • न्यायिक प्रक्रिया में फॉरेंसिक साक्ष्यों का महत्व है।

लखनऊ, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए प्रतिबद्ध योगी सरकार भविष्य उन्मुख तकनीकों के प्रयोग के माध्यम से प्रदेश में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने की तैयारी कर रही है। इस दिशा में सीएम योगी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंसेज (यूपीएसआईएफएस) में आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार के अंतिम दिन कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई।

इसमें साइबर सुरक्षा से लेकर फॉरेंसिक साइंस की उन्नति तक कई विषयों पर पैनल चर्चा हुई, जिसमें जीनोम मैपिंग, जिनियोलॉजिकल डेटाबेस निर्माण, एआई और आंत्रप्रेन्योरशिप जैसे मुद्दे शामिल थे।

इसी संदर्भ में, साइबर अपराध के विशेषज्ञों ने माना कि चीन-पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की ओर से भारत की साइबर सुरक्षा में सेंध लगाने की बढ़ती कोशिशों पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है।

विशेषज्ञों ने कहा कि चीन-पाकिस्तान की आक्रामक रणनीति का मुकाबला करने के लिए भारत को तेजी से सुरक्षित डिजिटल अवसंरचना विकसित करने की आवश्यकता है। साइबर अपराध की सबसे प्रमुख कड़ी 'साइबर किल चेन' को रक्तबीज बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे वैश्विक प्रयासों के माध्यम से तोड़ा जा सकता है। वहीं, फॉरेंसिक क्षेत्र में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और भविष्य आधारित तकनीकों का प्रयोग कर पीड़ितों को न्याय और सहायता दिलाने के साथ दोषियों को दंडित करने पर जोर दिया गया।

इस दौरान, भारत सहित विश्व के कई मामलों का उल्लेख किया गया और उनसे मिलने वाली सीख पर चर्चा की गई।

बुधवार को पैनल चर्चा में भाग लेते हुए महाराष्ट्र के प्रमुख सचिव ब्रजेश सिंह ने साइबर खतरों और पुलिसिंग के वैश्विक परिदृश्य पर चर्चा की।

उन्होंने कहा कि आज दुनिया में एक छोटा सा परिवर्तन भी बहुत बड़ा प्रभाव ला सकता है। 'हिज्बुल्ला पेजर अटैक' इसका एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि 'साइबर किल चेन' रक्तबीज की तरह है। भारत का सबसे बड़ा पोर्ट, जो 3 महीने के लिए जीएनपीटी का पोर्ट ऑपरेट नहीं हो पाया, एक मालवेयर के कारण। यह 'साइबर किल चेन' का उदाहरण है। साइबर क्राइम के अवसंरचना को वैश्विक प्रयासों से ही तोड़ा जा सकता है।

उन्होंने बताया कि लॉकबिट को तोड़ने के लिए 11 देशों की सुरक्षा एजेंसियों को मिलकर काम करना पड़ा। इसका मतलब है कि साइबर अपराध पर पारंपरिक पुलिसिंग के तरीके विफल हो जाते हैं। साइबर किल चेन में रिकॉन, वेपनाइजेशन, डिलीवरी और उत्पीड़न सहित 7 चरण शामिल होते हैं।

ब्रजेश सिंह ने कहा कि संकट को रीयल टाइम में मैप करना आवश्यक है। एक बार खतरा पहचानने के बाद सबूतों को चिह्नित कर उन्हें सुरक्षित करना चाहिए। साइबर मामलों की चेन ऑफ कस्टडी भी फॉरेंसिक के रूप में कार्य करती है। अगले चरण में मनी कटऑफ करना आवश्यक हो जाता है। इसमें वॉलेट, ब्लॉकचेन, डिजिटल मनी जैसे सभी तथ्यों पर कार्य करने की आवश्यकता है। इसके अगले चरण में क्रिमिनल इंफ्रास्ट्रक्चर को सीज करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, संभावित पीड़ित को अलर्ट करने और प्रतिक्रिया तंत्र पर कार्य करने की आवश्यकता है और उनकी सहायता की जानी चाहिए। साइबर अपराध के पीड़ितों के लिए मदद, परामर्श और न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। डिजिटल अरेस्ट सहित सभी साइबर धोखाधड़ी को न केवल रोकना है, बल्कि हर मामले से सीख लेकर एक विस्तृत तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है।

उन्होंने आरबीआई साइबर सिक्योरिटी फ्रेमवर्क की तारीफ करते हुए जोर दिया कि भारत में डिजिटल संप्रभुता पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है, इससे मामले सुलझाने में मदद मिलेगी। हेल्थ डेटा कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि हमें पता होता कि किसी को तपेदिक है तो शायद स्थिति अलग होती। साइबर सिक्योरिटी भी कृषि की तरह है, इसे बाहर से इंपोर्ट नहीं किया जा सकता, इसे भारत में ही विकसित करना होगा।

ऑस्ट्रेलिया के साइबर विशेषज्ञ रॉबी अब्राहम ने वर्चुअल माध्यम से पैनल चर्चा में शामिल होकर हैकिंग की बदलती प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पहले प्रोग्रामिंग, स्क्रिप्टिंग, ओएस, नेटवर्किंग प्रोटोकॉल, शेलकोड राइटिंग जैसी तकनीकों का उपयोग होता था। फिलीपींस के एक छात्र ने 'आई लव यू' वॉर्म बनाया था जिसे ईमेल से सर्कुलेट किया गया, जिससे 8.7 बिलियन यूएस डॉलर का विश्व को नुकसान हुआ। इसी तरह, 'कन्फिगर' वॉर्म के जरिए एक रूसी साइबर अपराध समूह ने 9 बिलियन यूएस डॉलर का नुकसान कुल 190 देशों में किया। 'क्रिप्टोलॉकर' के पीछे रूसी साइबर अपराध समूह का हाथ होने की आशंका है, जिसके जरिए 27 मिलियन बिटक्वाइन की वैश्विक कमाई की गई और इसका फिरौती के रूप में उपयोग किया गया। आज के परिदृश्य में चीजें बदल चुकी हैं।

उनके अनुसार, अब ईमेल और सोशल मीडिया पर रैनसमवेयर और फिशिंगवेयर के माध्यम से साइबर हमले हो रहे हैं। इसके जरिए ब्राउजिंग डेटा, क्रिप्टो वॉलेट सहित गोपनीय जानकारियों तक हैकर्स का पहुंच बढ़ जाता है। अब हैकिंग के बजाय हैकर्स लॉगिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इससे वे सिस्टम तक पहुंच प्राप्त कर ऐसे क्रेडेंशियल्स हासिल कर लेते हैं, जो या तो सीधे तौर पर लाभ पहुंचाते हैं या उन्हें डार्क वेब पर बेच देते हैं। इसे रोकने के लिए नियमित सुरक्षा प्रशिक्षण, सभी खातों को MFA सक्षम करना, एंटीवायरस का उपयोग, ईमेल और संदेशों के प्रति सतर्क रहकर साइबर हैकिंग और धोखाधड़ी से बचा जा सकता है।

ऑस्ट्रेलिया के साइबर विशेषज्ञ शांतनु भट्टाचार्य ने मिक्स्ड डीएनए एनालिसिस की जटिल प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि उन्नत एल्गोरिदम के माध्यम से पैटर्न पहचानने और दक्षता को बढ़ावा मिलता है। इससे केस को सुलझाने में आसानी होती है और सटीक प्रोफाइल विभाजन में मदद मिलती है। एआई के माध्यम से माइक्रो पैटर्न को समझने में मदद मिलती है, जिससे पीड़ित और आरोपी के डीएनए को अलग करने में सहायता होती है।

सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग डायग्नॉन्टिक्स (उप्पल) हैदराबाद के स्टाफ साइंटिस्ट और ग्रुप हेड डॉ. मधुसूदन रेड्डी नंदीनेनी ने नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग, रैपिड डीएनए टेक्नोलॉजी, मिनिएचर और पोर्टेबल डिवाइस के बारे में जानकारी दी। हैदराबाद के NALSAR के प्रोजेक्ट 39 ए के कार्यकारी निदेशक ने जोर दिया कि केवल पुलिस लैब में बने तरीके को फॉरेंसिक साइंस नहीं माना जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि देश के लैब्स की क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। जजों और वकीलों को भी फॉरेंसिक सबूतों के बारे में जानकारी होनी चाहिए, जिससे उन्हें अपना फैसला सुनाने और न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

यूपीएसआईएफएस के फाउंडिंग डायरेक्टर जीके गोस्वामी ने कहा कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि चाहे कितने ही दोषी बचें, लेकिन निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। हम न्याय के लिए कार्य करते हैं। यदि हमारे साक्ष्य सही हैं तो ही हम न्याय दिला सकेंगे। हमें अक्षय साक्ष्य जुटाने होंगे क्योंकि न्याय तभी हो सकेगा जब निष्पक्षता के साथ कार्य करें।

Point of View

यह स्पष्ट है कि भारत को साइबर सुरक्षा के प्रति गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की बढ़ती साइबर आक्रामकता भारत के लिए एक गंभीर खतरा है। हमें एक मजबूत डिजिटल अवसंरचना विकसित करने की आवश्यकता है ताकि हम इस खतरे का प्रभावी ढंग से सामना कर सकें।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

भारत में साइबर सुरक्षा के लिए कौन सी तकनीकें महत्वपूर्ण हैं?
भारत में साइबर सुरक्षा के लिए एआई, मशीन लर्निंग, और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकें महत्वपूर्ण हैं।
क्यों चीन-पाकिस्तान से साइबर खतरे बढ़ रहे हैं?
चीन-पाकिस्तान जैसे देशों की आक्रामक रणनीति के कारण भारत की साइबर सुरक्षा पर खतरे बढ़ रहे हैं।
साइबर क्राइम का मुकाबला कैसे किया जा सकता है?
साइबर क्राइम का मुकाबला करने के लिए सुरक्षित डिजिटल अवसंरचना और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।
क्या साइबर किल चेन को तोड़ना संभव है?
हां, साइबर किल चेन को तोड़ने के लिए वैश्विक प्रयासों की जरूरत है।
फॉरेंसिक साइंस में नई तकनीकों का क्या महत्व है?
फॉरेंसिक साइंस में नई तकनीकों का महत्व न्याय दिलाने और सबूतों को सहेजने में है।