सोल इनविक्टस से क्रिसमस तक: आस्था और परंपराओं का संगम, 25 दिसंबर क्यों है खास?
सारांश
Key Takeaways
- क्रिसमस
- यीशु का जन्म
- सोल इनविक्टस
- परंपराएं
- सांता क्लॉज
नई दिल्ली, 24 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे प्रमुख और उत्सव है, जिसे हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है। इसकी पूर्व संध्या, 24 दिसंबर की रात को क्रिसमस ईव के रूप में विशेष महत्व दिया जाता है।
ईसाई मान्यता के अनुसार, क्रिसमस के दिन यीशु, जो ईश्वर के पुत्र हैं, मानव रूप में धरती पर आए थे। हालाँकि, बाइबल में इसकी कोई स्पष्ट तारीख नहीं दी गई है। रोमन पर्व सोल इनविक्टस से इस उत्सव का गहरा संबंध है।
बाइबल में यीशु के जन्म की सटीक तारीख का उल्लेख नहीं है, लेकिन चौथी शताब्दी में रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने 25 दिसंबर को इस उत्सव के लिए चुना। यह तिथि रोमन पर्व सोल इनविक्टस से जुड़ी थी, जो सर्दियों की सबसे लंबी रात के बाद सूर्य की वापसी का प्रतीक थी। चर्च ने इसे यीशु के जन्म से जोड़कर इसे और भी लोकप्रिय बनाया।
वास्तव में, सोल इनविक्टस रोमन साम्राज्य के अंतिम दिनों के एक प्रमुख सूर्य देवता थे। यह रोमन धर्म में सूर्य की पूजा का एक विकसित और शक्तिशाली रूप था, जो प्रकाश, विजय, नवीनीकरण और साम्राज्य की एकता का प्रतीक माना जाता था।
रोमन साम्राज्य में सूर्य देवता की पूजा की परंपरा बहुत पुरानी थी। इसे प्रारंभ में सोल कहा जाता था, लेकिन तीसरी शताब्दी में यह सोल इनविक्टस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सम्राट औरेलियन ने 274 ईस्वी में इसकी पूजा को आधिकारिक धर्म का हिस्सा बनाया। उन्होंने इसे साम्राज्य की एकता का प्रतीक बनाया।
औरेलियन ने सोल इनविक्टस को साम्राज्य का प्रमुख देवता घोषित किया और रोम में इसका मंदिर बनवाया। इसके चित्र अक्सर सिक्कों पर देखे जाते थे।
ईसाई मान्यता के अनुसार, यीशु को ईश्वर का पुत्र माना जाता है, जो मानवता के कल्याण, प्रेम, करुणा, क्षमा और शांति का सन्देश लेकर आए थे। उनका जन्म बैथलहम में हुआ था, जहाँ उनकी मां मरियम और पिता जोसेफ को शरण में कठिनाई हुई। अंततः वे एक गौशाले में ठहरे, जहाँ यीशु का जन्म हुआ। इस त्योहार में सांता (जिनका असली नाम सेंट निकोलस था) का खास महत्व है।
क्रिसमस की परंपराएं भी बहुत खास हैं। क्रिसमस ट्री सजाना, उस पर सितारे, बॉल्स, लाइट्स और गिफ्ट्स लगाना सबसे लोकप्रिय है। बच्चे सांता क्लॉज का इंतजार करते हैं, जो रात में चिमनी से आकर उपहार रख जाता है। कैरेलमिडनाइट मास, विशेष डिनर (जैसे टर्की, प्लम केक, कुकीज, एप्पम, स्ट्यू आदि) और एक-दूसरे को गिफ्ट देने की परंपरा हर जगह देखी जाती है। भारत में तो यह और भी रंगीन है। यहाँ क्रिसमस ट्री की जगह कभी आम या केले के पेड़ भी सजाए जाते हैं और स्टार लालटेन घरों के आंगन में जगमगाती हैं।
भारत में क्रिसमस का स्वरूप पूरी तरह अनोखा है। यहाँ यह केवल धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है, जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। गोवा, केरल, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम जैसे राज्यों में, जहाँ ईसाई आबादी अधिक है, वहाँ उत्सव की धूम अलग ही होती है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, इंदौर और बस्तर जैसे शहरों में भी बाजार जगमगाते हैं। चर्चों को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है और प्लम केक, कुकीज तथा विशेष डिशेज की महक हर गली में फैल जाती है।
क्रिसमस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि प्रेम, एकता और दान का संदेश है। गरीबों को भोजन और कपड़े बांटना और जरूरतमंदों की मदद करना इस त्योहार का मूल मंत्र है। इस ठंडे मौसम में, जब चारों ओर कोहरा और शीतलहर हो, क्रिसमस की गर्माहट दिल को छू लेती है।