क्या चुनाव आयोग को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने की आवश्यकता है? : अजय माकन
सारांश
Key Takeaways
- चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए।
- लोकतंत्र की रक्षा का कार्य सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है।
- हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत के आंकड़े बदल गए।
- सीसीटीवी फुटेज की रिकॉर्डिंग समय सीमा को घटाया गया।
- मतदाता नामों में फर्जीवाड़े की शिकायतें आई हैं।
नई दिल्ली, ११ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। राज्यसभा में गुरुवार को चुनाव सुधारों पर चर्चा करते हुए कांग्रेस के सांसद अजय माकन ने कहा कि हम गर्व से कहते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है, लेकिन आज जो तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं, वे यह दर्शाते हैं कि शायद यह जननी अब जीवित नहीं है।
अजय माकन ने कहा कि चुनाव आयोग को अपनी विश्वसनीयता बनानी पड़ेगी। अगर अंपायर खुद एक टीम की जर्सी पहन लेगा, तो दूसरी टीम क्या करेगी?
उन्होंने आरोप लगाया कि २०२४ में १६ मार्च को चुनाव घोषित हुए और उससे एक महीने पहले कांग्रेस के सभी बैंक खाते सील कर दिए गए। हमने चुनाव आयोग को सूचित किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। कांग्रेस पार्टी को इनकम टैक्स विभाग ने २१० करोड़ रुपए का नोटिस भेजा। इसके बाद, इनकम टैक्स विभाग ने हमारे खाते से १३५ करोड़ रुपए अपने आप निकाल लिए। फिर २३ मार्च को हमारे खाते खोले गए। ऐसे में प्रमुख विपक्षी दल चुनाव की तैयारी कैसे करेगा?
राज्यसभा में बोलते हुए माकन ने कहा कि सरकार का सबसे बड़ा कार्य लोकतंत्र की रक्षा करना होता है, लेकिन इस सरकार ने इस कार्य में पूरी तरह से विफलता दिखाई है। मैंने पार्टी का कोषाध्यक्ष होने के नाते उद्योगपतियों से बात की, लेकिन उन्होंने कहा कि जैसे ही हम मदद करते हैं, एजेंसियां हमारे पीछे लग जाती हैं। ऐसे हालात में लोकतंत्र कैसे जिंदा रहेगा?
हरियाणा विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आयोग ने चुनाव के बाद अलग-अलग दिन अलग-अलग मतदान प्रतिशत के आंकड़े दिए और मतगणना के बाद आंकड़े बदल दिए।
माकन ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज रिकॉर्ड रखने की समय सीमा को एक साल से घटाकर ४५ दिन कर दिया गया। हरियाणा विधानसभा चुनाव की सीसीटीवी फुटेज के लिए हमने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में आवेदन किया। १० दिसंबर को हाईकोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज देने का आदेश दिया। लेकिन, २० दिसंबर को फुटेज जारी करने के बजाय, केंद्र सरकार ने नियम ही बदल दिए और फुटेज देने से मना कर दिया।
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कोई गलत कार्य नहीं हुआ तो सीसीटीवी फुटेज क्यों छुपाई जा रही है? हाईकोर्ट के आदेश को दबाने का क्या कारण है? कर्नाटक विधानसभा के उदाहरण में उन्होंने बताया कि वहाँ ६,०१८ मतदाताओं के नाम काटने के आवेदन आए। जांच में पता चला कि इनमें से ५,९९४ आवेदन फर्जी थे।
उन्होंने कहा कि जिन नामों को काटा गया, वे दलित और अल्पसंख्यकों के थे। सीआईडी ने चुनाव आयोग से संपर्क किया, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं दी गई। बाद में पता चला कि एक नाम काटने के लिए ८० रुपए दिए जा रहे थे और चुनाव आयोग पुलिस की मदद करने के बजाय जांच को बाधित कर रहा था। उन्होंने सवाल किया, "क्या वोट चोरों को बचाना ही चुनाव आयोग का काम रह गया है?"