क्या दीना पाठक ने थिएटर से सीखी अभिनय की ऐसी जादूगरी जिसे प्रथम राष्ट्रपति ने माना?

सारांश
Key Takeaways
- दीना पाठक ने हिंदी सिनेमा और रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उन्होंने मां और दादी के किरदारों में अपनी पहचान बनाई।
- उनका नाटक 'मेना गुर्जरी' प्रथम राष्ट्रपति के लिए प्रस्तुत किया गया था।
- दीना पाठक ने अपने बच्चों को भी सिनेमा में आगे बढ़ाया।
- उनकी कहानी हमें जुनून और प्रतिभा के महत्व का पाठ पढ़ाती है।
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्तमान समय में जब काम का बोझ और जिम्मेदारियों का दबाव हमें थका देता है, एक ऐसी अभिनेत्री का नाम याद आता है जिसने अपने हंसमुख अभिनय से दर्शकों के दिलों पर छह दशक तक राज किया। हम बात कर रहे हैं दीना पाठक की।
11 अक्टूबर 2002 को इस प्रसिद्ध अभिनेत्री का मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। जबकि अन्य बॉलीवुड अभिनेत्रियां मां, दादी और नानी के किरदार निभाने से दूर भागती थीं, दीना पाठक ने इन्ही भूमिकाओं में अपने अमर अभिनय के द्वारा दर्शकों के दिलों में अपनी एक खास जगह बनाई। अपने जुनून, मेहनत और प्रतिभा के साथ उन्होंने भारतीय रंगमंच, टेलिविजन और सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
दीना पाठक का जन्म 4 मार्च 1922 को गुजरात में हुआ। गुजराती परिवार से संबंधित दीना ने अपने करियर की शुरुआत 1942 में थिएटर से की। उनका एक प्रसिद्ध नाटक 'मेना गुर्जरी' इतना चर्चित हुआ कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के लिए राष्ट्रपति भवन में इसका विशेष प्रदर्शन किया गया।
गुजराती रंगमंच से सीखी गई कला ने उन्हें हिंदी सिनेमा में प्रवेश दिलाया। रंगमंच और हिंदी सिनेमा में दीना पाठक ने 200 से अधिक फिल्मों और अनगिनत नाटकों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
दीना पाठक ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने आजादी से पहले थिएटर करना शुरू किया। गुजराती थिएटर में दर्शक उनके लिए दीवाने होते थे। हालांकि, उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे हिंदी सिनेमा में आएंगी, लेकिन उनके नसीब में था तो वे हिंदी फिल्मों में भी आ गईं। एक बार उन्होंने बताया था कि हिंदी फिल्मों में आने का फैसला इसलिए किया क्योंकि तब थिएटर से गुजारा नहीं होता था। उनके अभिनय के प्रति प्यार कभी कम नहीं हुआ।
इस प्रसिद्ध अभिनेत्री ने अपने करियर में एक से बढ़कर एक थिएटर नाटकों में अपनी भूमिकाओं को अमर किया, और हिंदी फिल्मों में मां, दादी और नानी के किरदारों ने उन्हें हर घर में मशहूर बना दिया। जब वह स्क्रीन पर आतीं, तो दर्शकों को लगता था कि पड़ोसी की दादी आई हैं। उनके चेहरे की हंसी और संवाद ने दर्शकों को वर्षों तक जोड़े रखा। दीना पाठक का मानना था कि प्रतिभा की पहचान होनी चाहिए।
वह जिस फिल्म में मां या दादी का किरदार निभाती थीं, उस फिल्म को दर्शक कभी नहीं भूल पाते थे। उन्होंने फिल्म 'गोलमाल', 'खूबसूरत' और 'मिर्च मसाला' जैसी फिल्मों में काम किया। छह दशक तक अपने विभिन्न किरदारों से दर्शकों का मनोरंजन करने वाली इस अभिनेत्री ने उस दौर के बड़े से बड़े कलाकारों के साथ काम किया।
दीना पाठक ने बलदेव पाठक से शादी की, जो गेटवे ऑफ इंडिया के पास दर्जी का काम करते थे। बलदेव ने राजेश खन्ना से लेकर दिलीप कुमार तक के कपड़ों को डिजाइन किया। हालांकि जब राजेश खन्ना की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुईं, तो उनका व्यापार भी चौपट हो गया। बाद में पति की मृत्यु से दीना पाठक पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने अभिनय से दूरी नहीं बनाई। एक सिंगल मदर होने के नाते उन्होंने अपनी दो बेटियों, रत्ना पाठक शाह और सुप्रिया पाठक की परवरिश की।
यह दोनों ने भी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए बॉलीवुड में बड़ा नाम बनाया। रत्ना की शादी मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह से हुई, जबकि सुप्रिया अभिनेता पंकज कपूर की पत्नी हैं। दोनों बेटियों ने अपनी मां की तरह सिनेमा में खूब नाम कमाया और दीना की विरासत को आगे बढ़ाया।
दीना पाठक से जब एक बार एक इंटरव्यू में पूछा गया कि भगवान की आप पर बहुत कृपा है कि आपके घर में प्रतिभाओं का खजाना है। इस सवाल के जवाब में उन्होंने हंसते हुए कहा था कि प्रतिभा कहीं भी हो, उसकी कदर होनी चाहिए। फिल्मों में दीना पाठक द्वारा निभाए गए किरदार हमें सिखाते हैं कि उम्र सिर्फ संख्या है, जुनून ही असली उम्र है।