क्या अल-हमरा में संपन्न हुआ ‘डेजर्ट साइक्लोन’, यूएई संग मजबूत रक्षा सहयोग?
सारांश
Key Takeaways
- डेजर्ट साइक्लोन-2 अभ्यास ने दोनों सेनाओं के बीच संबंधों को मजबूत किया।
- अभ्यास में शहरी युद्धक तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया गया।
नई दिल्ली, 31 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की सेनाओं के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास डेजर्ट साइक्लोन-2 सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। यह सैन्य अभ्यास अबू धाबी स्थित अल-हमरा ट्रेनिंग सिटी में आयोजित किया गया। यूएई में प्रशिक्षण के दौरान दोनों सेनाओं ने शहरी युद्धक तकनीकों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया।
इस अभ्यास के दौरान इमारतों की मार्किंग, क्लियरेंस, आईईडी अवेयरनेस और घायलों की निकासी का अभ्यास किया गया। इसके अतिरिक्त, युद्ध में प्राथमिक उपचार और मिशन योजना पर भी गहन प्रशिक्षण प्रदान किया गया। दोनों देशों के सैनिकों ने रूम इंटरवेंशन, बिल्डिंग क्लियरेंस, हेलिबोर्न ऑपरेशंस, एयर असॉल्ट और पलटन-स्तर की संयुक्त आक्रमण ड्रिल्स का सफलतापूर्वक संचालन किया।
अभ्यास 18 दिसंबर को अबू धाबी के अल-हमरा में प्रारंभ हुआ। भारतीय सेना के अनुसार, यह द्विपक्षीय अभ्यास न केवल दोनों देशों के सैन्य संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता के प्रति साझा प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। इस अभ्यास में कक्षा-आधारित प्रशिक्षण और मैदानी अभियानों का संतुलित मिश्रण शामिल था। इसका उद्देश्य शहरी परिस्थितियों में संचालन क्षमता, आपसी विश्वास, समन्वय और अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ावा देना था।
अभ्यास के अंतिम चरण में दोनों देशों के सैनिकों ने समेकित आक्रामक और रक्षात्मक शहरी अभियानों का प्रदर्शन किया। भारतीय सेना के अनुसार, ये अभियान दोनों सेनाओं की तालमेलयुक्त कार्रवाई और संयुक्त परिचालन तत्परता को दर्शाते हैं। भारतीय और यूएई के सैनिकों ने वास्तविक शहरी भूभाग से मिलते-जुलते क्षेत्रों में कई प्रकार के व्यावहारिक ड्रिल किए, जिनमें रूम इंटरवेंशन और बिल्डिंग क्लियरेंस शामिल थे।
इस अभ्यास में भारतीय सेना के 45 सदस्यीय दल ने भाग लिया, जिसमें मुख्यतः मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री रेजिमेंट के जवान शामिल थे। यूएई की ओर से 53 मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री बटालियन के जवानों ने भी भाग लिया। भारतीय सेना का मानना है कि डेजर्ट साइक्लोन-2 ने दोनों देशों की सेनाओं के व्यावसायिक संबंधों को और मजबूत किया और भविष्य के बहुराष्ट्रीय अभियानों के लिए संयुक्त क्षमता को सुदृढ़ किया।