क्या आयुर्वेद का खजाना है धातकी का पौधा? जानें इसके अद्भुत लाभ

सारांश
Key Takeaways
- धातकी का पौधा आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
- इसके फूल, फल, जड़ और छाल का उपयोग कई बीमारियों में होता है।
- यह ल्यूकोरिया और अनियमित मासिक धर्म जैसी समस्याओं में लाभकारी है।
- धातकी का चूर्ण घावों और सूजन में भी उपयोग किया जाता है।
नई दिल्ली, 9 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। धातकी को 'धवई' और 'बहुपुष्पिका' के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा भारत के लगभग सभी राज्यों में पाया जाता है, लेकिन यह अधिकतर पानीदार क्षेत्रों, जैसे पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में कम देखने को मिलता है। धातकी के फूलों, फल, जड़ और छाल का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में कई रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
धातकी का वैज्ञानिक नाम 'वुडफोर्डिया फ्रुटिकोसा' है। यह 3-6 मीटर ऊँचाई वाला झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाओं और पत्तियों पर विशेष प्रकार के काले बिंदुओं का जमघट होता है। इसके फूल चमकीले लाल रंग के होते हैं और फल पतले, अंडाकार होते हैं, जो भूरे रंग के छोटे, चिकने बीजों से भरे होते हैं।
अमेरिकन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने इसकी पत्तियों पर अध्ययन किया है, जिसमें यह पाया गया कि इनमें ऐसे रासायनिक तत्व हैं, जो ल्यूकोरिया, अनियमित मासिक धर्म, पेशाब में जलन और मूत्र में खून आने जैसी बीमारियों में लाभकारी हो सकते हैं।
रिसर्च में यह भी बताया गया है कि इसकी पत्तियों का उपयोग बुखार, खांसी में खून, गठिया, अल्सर और पशुओं में दूध बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।
चरक संहिता के अनुसार, धातकी को मूत्रवर्धक माना गया है। इसके अलावा, इसे आसव और अरिष्ट (आयुर्वेदिक औषधियां) बनाने में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह किण्वन प्रक्रिया में सहायता करता है। इसे दस्त और पेचिश जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में भी सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इसके फूलों का चूर्ण शहद या छाछ के साथ लेने से त्वरित राहत मिलती है और यह बार-बार शौच जाने की आदत को भी नियंत्रित करता है।
सुश्रुत संहिता में इसे घाव और रक्तस्राव को रोकने में सहायक बताया गया है। घाव या चोट को ठीक करने और सूजन को कम करने के लिए इसके फूलों का चूर्ण लगाने से घाव जल्दी भर जाता है। इसके लेप से चोट और घाव में राहत मिलती है।