क्या दिल्ली के अक्षरधाम में अन्नकूट उत्सव का भव्य आयोजन हुआ?

Click to start listening
क्या दिल्ली के अक्षरधाम में अन्नकूट उत्सव का भव्य आयोजन हुआ?

सारांश

दिल्ली के अक्षरधाम में अन्नकूट उत्सव का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें 1,232 शाकाहारी व्यंजन भगवान को अर्पित किए गए। यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने भाग लिया और भक्ति का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। जानिए इस उत्सव की पूरी कहानी और उसके महत्व के बारे में।

Key Takeaways

  • अन्नकूट उत्सव में 1,232 व्यंजनों का महत्व है।
  • यह उत्सव भक्ति और सद्भाव का प्रतीक है।
  • इसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
  • यह उत्सव भगवान के प्रति कृतज्ञता
  • यह भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।

नई दिल्‍ली, 22 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सनातन उत्सव परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम में अन्नकूट गोवर्धन पूजा का एक भव्य आयोजन किया गया। इस उत्सव में हजारों लोग श्रद्धा और भक्ति के साथ मंदिर परिसर में एकत्रित हुए। यहाँ पर 1,232 सात्विक शाकाहारी व्यंजन भगवान के सामने थाल रूप में अर्पित किए गए।

परम पूज्य महंतस्वामी महाराज की प्रेरणा से दुनिया भर में 1,800 से अधिक स्वामीनारायण मंदिरों और केंद्रों में दीपावली और अन्नकूट का उत्सव बाकी सभी हिंदू उत्सवों की तरह भक्ति और सद्भाव के साथ मनाया गया।

सुबह 10 बजे से दिल्ली अक्षरधाम में इसकी शुरुआत गोवर्धन महापूजा से हुई, जिसमें संस्था के वरिष्ठ संत और हजारों भक्त शामिल हुए। खासकर मंदिर के प्रांगण में ही गोवर्धन पर्वत की एक विशेष प्रतिकृति बनाई गई जहाँ संतों ने पारंपरिक ढंग से भगवान की वैदिक महापूजा और दिव्य आरती संपन्न की। वैदिक मंत्रों और भक्तिमय संगीत की गूंज ने पूरे वातावरण को दिव्यता और भक्तिभाव से भर दिया।

गुरुजी महंत स्वामी महाराज ने सभी को आशीर्वाद देते हुए बताया कि इस शुभ अवसर पर सभी तन, मन और धन से सुखी बनें। इस नववर्ष पर सभी सबके गुण ग्रहण करें, निंदा और अवगुण से बचें।

दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम में सुबह से ही श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मंदिर में देखी गई। हजारों श्रद्धालु अन्नकूट दर्शन के लिए मंदिर में पधारे, जिसमें 1,232 सात्विक शाकाहारी व्यंजन भगवान के सामने थाल रूप में अर्पित किए गए। हजारों समर्पित स्वयंसेवक दिन-रात मंदिर में सेवा कार्यों में जुटे रहे, जो कि निःस्वार्थ समर्पण, भक्ति और प्रेम का एक अद्भुत उदाहरण है।

देर शाम तक यह भव्य अन्नकूट दर्शन मंदिर में सभी के लिए खुला रहा। इस उत्सव के मर्म में 'तेरा तुझको अर्पण' की भावना साफ रूप से झलकती है। यह भक्तों की अटूट आस्था का प्रतीक है कि हमारे पास जो कुछ भी है, वह परमात्मा की कृपा से है और इसे उन्हें समर्पित करने से ही सच्ची प्रसन्नता और संतोष प्राप्त होता है।

दीपावली के बाद शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाने वाला यह उत्सव भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। कई राज्यों में इसे नव वर्ष का आरंभ माना जाता है।

5,000 साल पहले जब द्वापरयुग में इंद्र के प्रकोप से मूसलाधार वर्षा हुई तब भगवान श्रीकृष्ण ने विशाल गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। सातवें दिन जब सब शांत हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और सभी को इसकी पूजा कर अन्नकूट उत्सव करने की आज्ञा दी। तब से हर साल यह उत्सव मनाया जाने लगा।

Point of View

बल्कि यह सामाजिक सद्भाव का भी प्रतीक बना। इस प्रकार के आयोजनों से भारतीय संस्कृति की जड़ों को और मजबूती मिलती है, जो देश की विविधता और एकता को दर्शाती है।
NationPress
22/10/2025

Frequently Asked Questions

अन्नकूट उत्सव कब मनाया जाता है?
यह उत्सव दीपावली के बाद शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है।
इस उत्सव में कितने व्यंजन अर्पित किए गए?
1,232 सात्विक शाकाहारी व्यंजन भगवान के सामने अर्पित किए गए।
इस उत्सव का आयोजन कहाँ हुआ?
यह उत्सव दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम में आयोजित किया गया।
क्या इस उत्सव में लोग भाग ले सकते हैं?
हाँ, हजारों श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेते हैं।
इस उत्सव का महत्व क्या है?
यह उत्सव भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और भक्तों की आस्था को दर्शाने का एक अवसर है।