क्या बिंदू देसाई को दूसरी ही फिल्म से मिला खलनायिका का टैग?

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क्या बिंदू देसाई को दूसरी ही फिल्म से मिला खलनायिका का टैग?

सारांश

बिंदू देसाई, जो बॉलीवुड की एक प्रसिद्ध वैम्प अदाकारा हैं, ने अपनी दूसरी फिल्म से ही निगेटिव इमेज बनाई। क्या उनकी असल जिंदगी में भी लोगों ने उन्हें इसी रूप में देखा? जानिए बिंदू की कहानी और पर्दे की इस खलनायिका के पीछे की सच्चाई।

Key Takeaways

  • बिंदू देसाई की कहानी एक प्रेरणादायक सफर है।
  • दूसरी फिल्म से मिली पहचान ने उनके करियर को बदल दिया।
  • बिंदू की निगेटिव इमेज ने असल जिंदगी में भी उन्हें प्रभावित किया।
  • फिल्मों का प्रभाव केवल पर्दे तक सीमित नहीं होता।
  • एक कलाकार की पहचान उसके किरदारों से कहीं अधिक होती है।

नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड के 70 के दशक में एक ऐसी वैम्प अदाकारा थीं, जिनके प्रति जिज्ञासा लीड रोल करने वाली एक्ट्रेसेस से कहीं अधिक होती थी। हम बात कर रहे हैं फिल्म इंडस्ट्री की मोना डार्लिंग यानी बिंदू देसाई की। उन्होंने पर्दे पर लड़ाकू सास का किरदार निभाकर बहुओं को नाक में दम किया और कभी गैंगस्टर की गर्लफ्रेंड बनकर भी सिनेमा पर राज किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिंदू को पहली फिल्म से नहीं बल्कि दूसरी फिल्म से सफलता प्राप्त हुई?

बिंदू देसाई के पिता नानूभाई देसाई चाहते थे कि वह डॉक्टर या इंजीनियर बने, लेकिन बिंदू का सिनेमा के प्रति झुकाव उन्हें लीड एक्ट्रेस के रोल में नहीं आने दे रहा था। अपने पिता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई, जिससे उन्होंने फिल्मों का रुख किया। उनके जीजा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने इसमें उनकी मदद की।

बिंदू ने सबसे पहले 1962 में आई फिल्म 'अनपढ़' में साइड रोल किया, लेकिन वह उस समय 21 साल की थीं और फिल्म फ्लॉप रही। उनकी दूसरी फिल्म 'दो रास्ते' उनके लिए लकी साबित हुई। इस फिल्म में बिंदू ने निगेटिव रोल निभाया। एक इंटरव्यू में बिंदू ने बताया कि उन्होंने पहले निगेटिव रोल निभाने से हिचकिचाहट महसूस की, लेकिन परिवार के सदस्यों के प्रोत्साहन के बाद उन्होंने इसे स्वीकार किया। इस फिल्म ने बिंदू की जिंदगी बदल दी। इसके बाद उन्होंने 'इत्तफाक', 'आया सावन झूम के', 'डोली', 'कटी पतंग', और 'जंजीर' जैसी चर्चित फिल्में की।

बिंदू को लगातार निगेटिव रोल मिलते गए और उनकी इमेज पूरी तरह से निगेटिव हो गई। असल जिंदगी में भी लोग उन्हें पर्दे की खलनायिका के रूप में देखते थे। उन्होंने बताया कि महिलाओं को लगता था कि वह उनके पतियों को छीन लेंगी। बिंदू ने यह भी कहा कि उनके पति के एक करीबी दोस्त थे, जिससे कभी-कभी बातचीत होती थी, लेकिन उनकी पत्नी को यह लगता था कि वह उनके पति पर डोरे डाल रही हैं, जबकि असल में ऐसा कुछ नहीं था।

आज बिंदू अपने परिवार और पति के साथ मुंबई में रहती हैं और इंटरव्यू और शो में दिखाई देती हैं। उन्हें आखिरी बार फिल्म 'महबूबा' में देखा गया था, जो कि 2008 में आई थी।

Point of View

जहां एक अभिनेत्रा को उसके निगेटिव किरदारों के कारण समाज में एक अलग पहचान मिलती है। यह दर्शाता है कि कैसे फिल्मों का प्रभाव केवल पर्दे तक सीमित नहीं होता, बल्कि वास्तविक जीवन पर भी गहरा असर डालता है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कलाकारों की पहचान उनके द्वारा निभाए गए किरदारों से कहीं अधिक होती है।
NationPress
11/10/2025

Frequently Asked Questions

बिंदू देसाई ने पहली बार कब फिल्म में काम किया?
बिंदू देसाई ने पहली बार 1962 में आई फिल्म 'अनपढ़' में साइड रोल किया।
बिंदू को सबसे बड़ा लाभ किस फिल्म से मिला?
बिंदू को सबसे बड़ा लाभ उनकी दूसरी फिल्म 'दो रास्ते' से मिला, जिसमें उन्होंने निगेटिव रोल निभाया।
क्या बिंदू की असल जिंदगी में भी लोग उन्हें निगेटिव समझते थे?
जी हां, असल जिंदगी में भी लोग उन्हें पर्दे की खलनायिका की तरह ही देखते थे।
बिंदू देसाई आजकल क्या कर रही हैं?
आज बिंदू अपने परिवार के साथ मुंबई में रहती हैं और विभिन्न इंटरव्यू और शोज में दिखाई देती हैं।
बिंदू की आखिरी फिल्म कौन सी थी?
बिंदू को आखिरी बार 2008 में आई फिल्म 'महबूबा' में देखा गया था।