क्या डॉ. प्रभा अत्रे ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहुंचाने में योगदान दिया?

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क्या डॉ. प्रभा अत्रे ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहुंचाने में योगदान दिया?

सारांश

डॉ. प्रभा अत्रे, एक अद्वितीय गायिका, ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को न केवल महसूस किया, बल्कि इसे अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। उनके योगदान और संगीत की बारीकियों को समझने में उनकी यात्रा में प्रेरणा है। जानें उनके जीवन और संगीत में दिए गए योगदान के बारे में।

Key Takeaways

  • डॉ. प्रभा अत्रे ने शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
  • उन्होंने स्वरमयी गुरुकुल की स्थापना की।
  • उनका जन्म पुणे में हुआ था।
  • उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए हैं, जैसे कि पद्म विभूषण
  • उनकी आवाज और संगीत का जादू आज भी कायम है।

नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। यदि आप शास्त्रीय संगीत का आनंद लेना चाहते हैं और इस पर काम करने की इच्छा है, तो पहले आपको अभ्यास करना होगा। जब आप शास्त्र को समझेंगे, तभी आप जान पाएंगे कि आपको क्या करना है। संगीत की अपनी एक भाषा होती है, जिसे सीखना आवश्यक है। तभी आप इसका पूरा आनंद ले सकेंगे। यह कहना था भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने वाली प्रख्यात गायिका डॉ. प्रभा अत्रे का, जिन्होंने संगीत को न केवल महसूस किया, बल्कि उसे जीवनभर जिया।

डॉ. प्रभा अत्रे का संगीत के प्रति इतना प्यार था कि उन्हें सुनने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में भारी संख्या में दर्शक जुटते थे। उन्होंने एक बार कहा था, “सुरों की साधना पानी पर खिंची लकीर जैसी उठते ही मिट जाने वाली है।”

डॉ. प्रभा अत्रे किराना घराने की प्रसिद्ध गायिका थीं। उनका जन्म पुणे में १३ सितंबर १९३२ को हुआ। उन्होंने पुणे के आईएलएस लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक की पढ़ाई की।

हालांकि, संगीत में गहरी रुचि होने के कारण उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने गायन के साथ-साथ नृत्य का भी प्रशिक्षण लिया। संगीत की बारीकियों को समझने के लिए उन्होंने सुरेशबाबू माने जैसे कई दिग्गजों से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। डॉ. प्रभा अत्रे ने कहा कि वे अपने बचपन में इन्हें सुना करती थीं।

प्रसिद्ध गायिका की एक विशेषता थी कि वे अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं भूलती थीं। उनका मानना था कि आज जो कुछ भी वे हैं, उसके पीछे उनके गुरुओं का योगदान है।

शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने स्वरमयी गुरुकुल संस्था की स्थापना की। उन्होंने कुछ वर्षों तक आकाशवाणी में भी काम किया। इसके अलावा, उन्होंने मुंबई के एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया और बाद में संगीत विभाग की प्रमुख बनीं।

शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले। अत्रे को पद्मश्री (१९९०), पद्म भूषण (२००२) और २०२२ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए गए। उनके नाम एक चरण से ११ पुस्तकें प्रकाशित करने का विश्व रिकॉर्ड भी है।

मंच पर अपनी मधुर आवाज और नियंत्रण के साथ उन्होंने सुरों का ऐसा जादू बिखेरा कि शायद ही कोई संगीत प्रेमी उन्हें भुला पाए। उनकी विशेषता यह थी कि वे कठिन बोलों को भी सरलता से दर्शकों के दिलों तक पहुंचा देती थीं। यही प्रतिभा प्रभा अत्रे को अपने दौर की सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल करती है।

Point of View

डॉ. प्रभा अत्रे का योगदान भारतीय संस्कृति और संगीत के लिए अनमोल है। उनका कार्य न केवल संगीत को बढ़ावा देने में मदद करता है, बल्कि नए पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत भी है। यह आवश्यक है कि उनके योगदान को सही तरीके से मान्यता दी जाए।
NationPress
12/09/2025

Frequently Asked Questions

डॉ. प्रभा अत्रे का जन्म कब हुआ?
डॉ. प्रभा अत्रे का जन्म १३ सितंबर १९३२ को पुणे में हुआ।
उन्हें कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण जैसे कई पुरस्कार मिले हैं।
प्रभा अत्रे ने संगीत की शिक्षा किससे ली?
उन्होंने सुरेशबाबू माने समेत कई दिग्गजों से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल की।
उनका योगदान किस क्षेत्र में है?
उनका योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाने में है।
स्वरमयी गुरुकुल क्या है?
स्वरमयी गुरुकुल एक संस्था है, जिसकी स्थापना डॉ. प्रभा अत्रे ने शास्त्रीय संगीत के प्रचार के लिए की।