क्या भगवान शिव ने घृष्णेश्वर रूप में भक्त की भक्ति से प्रकट होकर हमें आशीर्वाद दिया?
सारांश
Key Takeaways
- घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव की भक्ति का प्रतीक है।
- यह मंदिर पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है।
- भक्तों की सच्ची आस्था यहाँ के दर्शन को खास बनाती है।
- यह स्थान दांपत्य जोड़ों के लिए विशेष महत्व रखता है।
- मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था।
महाराष्ट्र, 19 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देशभर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिनकी अपनी अलग पौराणिक कथा और मान्यता है। महाराष्ट्र में भगवान शिव का एक प्राचीन ज्योतिर्लिंग है, जो भक्त की सच्ची आस्था और भगवान शिव के प्यार एवं आशीर्वाद का प्रतीक है।
हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की, जिसका नाम भी एक भक्त की सच्ची श्रद्धा से प्रेरित होकर रखा गया है।
महाराष्ट्र के दौलताबाद से 20 किमी दूर वेरुल में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर स्थापित है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर को कुसुमेश्वर और गृश्मेश्वर मंदिरों के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने किया था, जिन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का एक बड़ा शिवलिंग है और उनके साथ मां पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा भी विराजमान हैं। भक्तों को भगवान शिव पूरे परिवार के साथ दर्शन देते हैं।
मंदिर की पौराणिक कथा एक सच्चे भक्त की भक्ति से जुड़ी है, जिसकी भक्ति से खुश होकर भगवान शंकर ने स्वयं दर्शन दिए। प्रचलित कथा के अनुसार, देवगिरी नामक पहाड़ पर एक ज्ञानी ब्राह्मण पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था। दोनों भगवान शिव के बड़े भक्त थे, लेकिन संतानहीन थे। संतान प्राप्ति के लिए सुदेहा ने अपने पति की दूसरी शादी अपनी बहन घुश्मा से करवा दी। बड़ी बहन के कहने पर घुश्मा रोज़ एक मिट्टी का शिवलिंग बनाती और उसे पानी में प्रवाहित कर देती। घुश्मा पूरी तरह से शिव की भक्ति में लीन हो गई थी और इसके परिणामस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
अपनी बहन की गोद में बच्चे को देखकर सुदेहा अंदर ही अंदर कुढ़ने लगी और बदला लेने की चाह में अपनी बहन के बेटे को मार डाला। जब इस बात की जानकारी घुश्मा और परिवार को हुई, तो घुश्मा का चेहरा शून्य हो गया। वह रोज़ की तरह शिवलिंग को जल विसर्जित करने गई, लेकिन तभी उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वयं दर्शन दिए और बेटे की मृत्यु का कारण बताया।
घुश्मा ने भगवान शिव से अपनी बहन को क्षमा करने की प्रार्थना की। भक्त की इस उदारता को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। घुश्मा ने महादेव से प्रार्थना की कि वे यहीं भक्तों की रक्षा करने और दांपत्य जोड़ों को दिव्य संतान देने के लिए विराजमान हों। इसीलिए इस मंदिर का नाम घृष्णेश्वर पड़ा। जिन दंपतियों को संतान नहीं होती, वे दूर-दूर से बाबा के दर्शन के लिए अवश्य आते हैं।