क्या ग्रेट मार्च ने दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी का सत्याग्रह जिंदा किया?
सारांश
Key Takeaways
- महात्मा गांधी का ग्रेट मार्च भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटना थी।
- इसमें हजारों भारतीयों ने दमन के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया।
- महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की नींव रखी।
- यह आंदोलन आज भी प्रेरणादायक है।
- दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम था।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। 1900 के प्रारंभिक दशक में भारत में स्वतंत्रता की ज्वाला तेजी से फैल रही थी। कुछ समूहों ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए क्रांतिकारी हिंसा का सहारा लिया। इसी दौरान विदेशों में भी भारत की आजादी के प्रति उत्साही लोग सक्रिय थे। जैसे कि 'गदर आंदोलन', जो विदेश में चलाए जा रहे थे।
इसी समय में, महात्मा गांधी ने 'सत्याग्रह' के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में भारतीय प्रवासियों के खिलाफ होने वाले अन्याय और भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। 6 नवंबर 1913 को, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में दमनकारी कानूनों के खिलाफ ग्रेट मार्च की शुरुआत की।
महात्मा गांधी मई 1893 में दक्षिण अफ्रीका आए थे। 23 वर्षीय बैरिस्टर के रूप में उन्होंने नटाल में एक भारतीय व्यापारी के लिए एक मामूली वेतन पर काम करना शुरू किया, यह सोचकर कि उन्हें नई भूमि में बेहतर अवसर मिलेंगे।
7 जून 1893 की रात को, जब महात्मा गांधी को रंगभेद के कारण पीटरमैरिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से बाहर निकाल दिया गया, वह रात भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई। महात्मा गांधी के पास एक फर्स्ट क्लास का वैध टिकट था, लेकिन सिर्फ इसलिए कि वे 'काले' थे, एक गोरे यात्री की आपत्ति पर उन्हें जबरन उतार दिया गया।
इस अपमान ने महात्मा गांधी के मन में एक विपत्ति पैदा की। उन्होंने उसी रात यह तय किया कि अन्याय के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की एक नई दिशा बनाई जाएगी। उनका संघर्ष यहीं से आरंभ हुआ।
उन्होंने 'सत्याग्रह' की नींव रखी और अन्याय के खिलाफ अहिंसा और सत्य के बल पर खड़े रहने का रास्ता चुना। लगभग दो दशकों तक, महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा की।
उस समय, नटाल में लगभग 50,000 भारतीय थे। इनमें से एक-तिहाई बागानों, खदानों और रेलवे में काम करने वाले 'बंधुआ मजदूर' थे। श्वेत अधिकारियों ने भारतीयों के मूल अधिकारों को छिनने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए।
महात्मा गांधी ने नटाल इंडियन कांग्रेस और ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की। उन्होंने युवाओं को सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और मजदूरों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की।
जून 1906 में, एशिएटिक कानून संशोधन अध्यादेश लाया गया, जिसका प्रभाव भारतीयों पर पड़ा। महात्मा गांधी ने इस अध्यादेश को भारतीय समुदाय के प्रति घृणा और भारत के सम्मान का अपमान माना।
11 सितंबर 1906 को, महात्मा गांधी ने एक विशाल जनसभा बुलाई। भारतीयों ने इस कानून को अपमानजनक माना और कष्ट सहने का निर्णय लिया। उन्होंने 'सत्याग्रह' शब्द को चुना, जिसका अर्थ था किसी सही उद्देश्य के लिए दृढ़ विरोध।
1910 में दक्षिण अफ्रीका संघ का गठन हुआ, लेकिन भारतीयों के लिए कोई सुधार नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने स्थिति को और बिगाड़ दिया, जिससे भारतीय विवाहों को अमान्य घोषित किया गया।
सितंबर 1913 में, सत्याग्रह फिर से शुरू हुआ, जिसमें महिलाओं को भी शामिल किया गया। 6 नवंबर 1913 को, महात्मा गांधी ने 'ग्रेट मार्च' का नेतृत्व किया।
प्रतिरोध में विभिन्न धर्मों और भाषाओं के लोग शामिल हुए। सरकार ने क्रूरता से जवाब दिया, लेकिन महात्मा गांधी ने समाज को प्रेरित किया। अंततः, सरकार को गांधी के साथ समझौता करना पड़ा, जिसमें सभी मुख्य मांगें मान ली गईं।
इसके बाद, महात्मा गांधी 18 जुलाई 1914 को भारत लौटे, जहां उन्हें स्वतंत्रता के लिए एक महाकाव्य संघर्ष का नेतृत्व करना था।