क्या इस वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में जीएसटी संग्रह में दोहरे अंकों में वृद्धि हुई?

सारांश
Key Takeaways
- जीएसटी संग्रह में 10.7 प्रतिशत की वृद्धि।
- सरकार ने छोटे व्यवसायों के लिए कई उपाय किए हैं।
- कंपोजिशन लेवी योजना छोटे करदाताओं को लाभ प्रदान करती है।
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक उपाय।
- बफर स्टॉक में वृद्धि और अनाज की रणनीतिक बिक्री।
नई दिल्ली, 29 जुलाई (राष्ट्र प्रेस) । वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने मंगलवार को संसद में जानकारी दी कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में औसत मासिक शुद्ध जीएसटी संग्रह में 10.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 1,80,774 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। पिछले वर्ष की इसी तिमाही में यह आंकड़ा 1,63,319 करोड़ रुपए था।
राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मंत्री ने बताया कि जीएसटी परिषद की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने स्मॉल बिजनेस सेक्टर के लिए कई लाभकारी उपाय किए हैं।
यदि छोटे और मध्यम उद्यमों का कुल कारोबार एक वित्त वर्ष में 40 लाख रुपए (विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए 20 लाख रुपए) से अधिक नहीं है, तो उन्हें जीएसटी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी।
इसी प्रकार, अगर किसी वित्त वर्ष में राज्य के भीतर या अंतर-राज्यीय कर योग्य सेवाओं की आपूर्ति में शामिल व्यक्तियों का कुल कारोबार 20 लाख रुपए (विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए 10 लाख रुपए) से अधिक नहीं है, तो उन्हें भी जीएसटी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
जीएसटी के अंतर्गत कंपोजिशन लेवी योजना छोटे और मध्यम करदाताओं के लिए एक सरल विधि है, जिनका कारोबार निर्धारित सीमा तक है।
वस्तुओं के व्यापारियों और निर्माताओं के लिए 1 प्रतिशत (सीजीएसटी अधिनियम के तहत 0.5 प्रतिशत और संबंधित एसजीएसटी अधिनियम के तहत 0.5 प्रतिशत) की एक समान दर से कर देय है। रेस्टोरेंट द्वारा आपूर्ति पर प्रत्येक अधिनियम के तहत 2.5 प्रतिशत कर देय है।
पिछले वित्त वर्ष में 5 करोड़ रुपए तक के वार्षिक कारोबार वाले सभी पात्र पंजीकृत व्यक्ति मासिक भुगतान के साथ तिमाही रिटर्न दाखिल करने का विकल्प चुन सकते हैं।
राज्य मंत्री ने आगे कहा कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए कई प्रशासनिक उपाय किए गए हैं।
इनमें आवश्यक खाद्य वस्तुओं के लिए बफर स्टॉक में वृद्धि और आपूर्ति बढ़ाने के लिए ओपन मार्केट में खरीदे गए अनाज की रणनीतिक बिक्री शामिल है।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा, कम आपूर्ति की अवधि के दौरान आयात और निर्यात पर अंकुश लगाना भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में से एक है।