क्या आप जानते हैं नन्हे गुरु हर किशन सिंह जी के विशाल हृदय की कहानी?

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क्या आप जानते हैं नन्हे गुरु हर किशन सिंह जी के विशाल हृदय की कहानी?

सारांश

गुरु हर किशन सिंह जी का जीवन, जो केवल आठ वर्ष तक रहा, निःस्वार्थ सेवा और करुणा का अनूठा उदाहरण है। जानें कैसे इस नन्हे गुरु ने मानवता की सेवा की और 'बाला पीर' के नाम से मशहूर हुए।

Key Takeaways

  • गुरु हर किशन सिंह जी का जीवन निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है।
  • उन्होंने चेचक महामारी के दौरान लोगों की सेवा की।
  • उन्हें 'बाला पीर' के नाम से सम्मानित किया गया।
  • गुरु जी ने केवल आठ वर्ष की आयु में संसार को अलविदा कहा।
  • आज का गुरुद्वारा बंगला साहिब श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थान है।

नई दिल्ली, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सिखों के इतिहास में जब भी निःस्वार्थ सेवा, करुणा और मानवता के अद्भुत उदाहरणों की चर्चा होती है, गुरु हर किशन सिंह जी का नाम श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। सिखों के अष्टम गुरु, गुरु हर किशन सिंह जी ने केवल पांच वर्ष की आयु में गुरु गद्दी संभाली और अपने छोटे से जीवन में ऐसा उदाहरण पेश किया, जिसे आज भी दुनिया श्रद्धा से स्मरण करती है।

7 जुलाई 1656गुरु हरकिशन सिंह जी, गुरु हर राय जी और माता कृष्ण कौर (सुलक्षणी जी) के छोटे पुत्र थे। वे बचपन से ही शांत, करुणामयी और आध्यात्मिक गुणों से भरे हुए थे। उनकी दृष्टि में भेदभाव, जाति-पाति या आयु का कोई महत्व नहीं था। उनके बड़े भाई राम राय को उनके पिता ने सिख मर्यादा से भटकने के कारण पहले ही गुरु गद्दी से हटा दिया था। परिणामस्वरूप, मात्र पांच वर्ष की आयु में गुरु हर राय जी ने अपने छोटे पुत्र हरकिशन को ही अष्टम नानक घोषित किया।

गुरु हरकिशन के गुरु बनने की बात से राम राय इतने आक्रोशित हो गए कि उन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब से इसकी शिकायत कर दी। औरंगजेब, जो स्वयं धर्म के नाम पर अनेक खेल खेल चुका था, बाल गुरु की लोकप्रियता से चकित और परेशान था। उसने गुरु जी को दिल्ली बुलाने का आदेश दिया, यह देखने के लिए कि इतना छोटा बालक आखिर कैसे लोगों के दिलों पर राज कर रहा है। दिल्ली के राजा जय सिंह को यह कार्य सौंपा गया। पहले तो गुरु जी ने दिल्ली जाने से मना कर दिया, लेकिन जब उनके अनुयायियों और राजा जय सिंह ने बार-बार आग्रह किया, तो उन्होंने इस यात्रा को स्वीकार किया।

दिल्ली पहुंचने पर राजा जय सिंह ने उन्हें अपने बंगले में ठहराया, जो आज का प्रसिद्ध गुरुद्वारा बंगला साहिब है। उस समय दिल्ली में चेचक और हैजे की महामारी फैली हुई थी। उस नन्हें बालक ने अपने छोटे-से हाथों और विशाल हृदय से हर जाति-धर्म के बीमारों की सेवा की। पानी पिलाया, देखभाल की और बिना भेदभाव के हर दुखी को अपनाया। इस सेवा भाव को देखकर स्थानीय मुसलमान उन्हें 'बाला पीर' कहकर सम्मानित करने लगे।

सेवा करते-करते गुरु हरकिशन सिंह जी खुद भी चेचक की चपेट में आ गए। कई दिनों तक वे तेज बुखार में तपते रहे। अंत समय में उन्होंने अपनी माता को पास बुलाया और कहा, "अब मेरा समय निकट है, मेरा उत्तराधिकारी 'बाबा बकाला' में मिलेगा।" यह संकेत था कि अगले गुरु, गुरु तेग बहादुर होंगे, जो उस समय पंजाब के बकाला गांव में रह रहे थे।

3 अप्रैल 1664गुरु हरकिशन सिंह जी ने "वाहेगुरु" का जाप करते हुए इस संसार से विदा ली।

जहां गुरु हरकिशन सिंह जी ने अंतिम समय बिताया, वही स्थान आज गुरुद्वारा बंगला साहिब के रूप में संसार भर में श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। इस गुरुद्वारे का सरोवर आज भी श्रद्धालुओं के लिए पवित्र माना जाता है।

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NationPress
04/08/2025

Frequently Asked Questions

गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म कब हुआ था?
गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म 7 जुलाई 1656 को पंजाब के कीरतपुर साहिब में हुआ था।
गुरु हर किशन सिंह जी को 'बाला पीर' क्यों कहा जाता है?
गुरु हर किशन सिंह जी को 'बाला पीर' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने चेचक महामारी के दौरान निस्वार्थ भाव से सभी जातियों और धर्मों के लोगों की सेवा की।
गुरु हर किशन सिंह जी की मृत्यु कब हुई?
गुरु हर किशन सिंह जी की मृत्यु 3 अप्रैल 1664 को हुई थी।
गुरु हर किशन सिंह जी का उत्तराधिकारी कौन था?
गुरु हर किशन सिंह जी का उत्तराधिकारी गुरु तेग बहादुर थे।
गुरुद्वारा बंगला साहिब का महत्व क्या है?
गुरुद्वारा बंगला साहिब वह स्थान है जहां गुरु हर किशन सिंह जी ने अपने अंतिम क्षण बिताए और यह आज श्रद्धा का केंद्र है।