क्या कशिश हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हल्द्वानी में बवाल होगा?

सारांश
Key Takeaways
- कशिश हत्याकांड ने पूरे उत्तराखंड को हिलाकर रख दिया है।
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्थानीय लोगों में गुस्सा पैदा कर रहा है।
- प्रदर्शन में कई सामाजिक संगठनों ने भाग लिया।
- आरोपी को सजा दिलाने के लिए न्याय की मांग जारी है।
- स्थानीय कलाकारों ने भी इस मामले में समर्थन जताया है।
हल्द्वानी, 18 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष 2014 में हल्द्वानी में घटित 7 वर्षीय मासूम कशिश की हत्या का मामला न केवल उत्तराखंड में, बल्कि पूरे देश में हलचल मचा चुका है। इस मामले में मुख्य आरोपी अख्तर अली को निचली अदालत और हाईकोर्ट ने पोक्सो अधिनियम और आईपीसी की धारा 376 के तहत मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया। इस फैसले के बाद, हल्द्वानी समेत पूरे प्रदेश में गुस्से की लहर दौड़ गई है। पीड़ित परिवार और स्थानीय लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
गुरुवार को हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में बड़ी संख्या में सामाजिक संगठन, स्थानीय लोग और उत्तराखंड के लोक कलाकार इकट्ठा हुए और धरना प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने आरोपी को फांसी देने की मांग की और सरकार व न्यायपालिका पर सवाल खड़े किए। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पीड़िता के परिवार की उम्मीदों को तोड़ने वाला है। गुस्से से भरे लोग बुद्ध पार्क से एसडीएम कोर्ट की ओर बढ़े, जहां पुलिस और प्रदर्शनकारियों में तीखी नोकझोंक हुई। हालांकि पुलिस ने रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय तक पहुंची और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजकर आरोपी को फांसी देने की मांग की।
इस प्रदर्शन में हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश भी शामिल हुए। इसके अलावा उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक कलाकार श्वेता महारा, इंदर आर्य, प्रियंका मेहरा और गोविंद दिगारी समेत कई कलाकारों ने भी सड़क पर उतरकर विरोध जताया। बड़ी संख्या में महिलाओं ने हाथों में बैनर और तख्तियां लेकर आक्रोश प्रकट किया।
गौरतलब है कि नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की रहने वाली 7 वर्षीय मासूम कशिश अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने काठगोदाम आई थी, जहां से वह अचानक लापता हो गई थी। पांच दिन बाद उसका शव गौला नदी के पास जंगल में मिला। जांच में सामने आया कि मासूम के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और फिर बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस घटना ने पूरे क्षेत्र को आक्रोशित कर दिया था और जगह-जगह धरना-प्रदर्शन हुए थे।
उस समय मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी मौके पर आकर लोगों को शांत करना पड़ा था। पुलिस ने इस केस में तीन लोगों को नामजद किया था। बाद में एक आरोपी को बरी कर दिया गया, दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल की कैद और जुर्माना हुआ, जबकि मुख्य आरोपी अख्तर अली को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा अख्तर अली को सबूतों के अभाव में निर्दोष घोषित किए जाने से एक बार फिर जनाक्रोश सड़कों पर फूट पड़ा है। लोगों का कहना है कि यह फैसला न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है और पीड़िता की आत्मा को न्याय दिलाने के लिए कठोर कार्रवाई जरूरी है।