क्या हरियाणा के करनाल में किसान पराली जलाने पर लगाम लगा रहे हैं?

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क्या हरियाणा के करनाल में किसान पराली जलाने पर लगाम लगा रहे हैं?

सारांश

हरियाणा के करनाल जिले के किसान पराली जलाने की पुरानी आदत को त्यागकर नई तकनीकों को अपना रहे हैं। यह परिवर्तन न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि कृषि की उर्वरता में भी सुधार ला रहा है। जानिए कैसे किसान इस बदलाव का हिस्सा बन रहे हैं।

Key Takeaways

  • किसान पराली जलाने के स्थान पर नई तकनीकें अपना रहे हैं।
  • पर्यावरण की सुरक्षा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • उर्वरता में वृद्धि के लिए फसल अवशेष प्रबंधन आवश्यक है।
  • सरकार द्वारा सब्सिडी और अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
  • किसानों को जागरूकता के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।

करनाल, १६ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हरियाणा के करनाल जिले के किसान अब पराली जलाने की पुरानी प्रथा को त्यागकर फसल अवशेष प्रबंधन की नवीनतम तकनीकों को अपना रहे हैं। यह परिवर्तन न केवल पर्यावरण के लिए एक राहत लेकर आया है, बल्कि खेतों की उर्वरता को भी बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहा है।

करनाल के झांझड़ी गाँव के किसान राजकुमार मराठा ने अपने १० एकड़ धान के खेत में पराली प्रबंधन का एक अद्वितीय उदाहरण पेश किया है।

उन्होंने राष्ट्र प्रेस को बताया, "इस बार धान की कटाई के बाद आसपास के खेतों में न तो आग लगी और न ही धुआं उठा। पहले मजबूरी में किसान पराली जलाते थे, लेकिन अब जागरूकता के साथ वे भविष्य की पीढ़ियों और पर्यावरण को बचाने के लिए कदम उठा रहे हैं।"

मराठा ने बताया कि उन्होंने स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) युक्त कंबाइन मशीन से धान की कटाई करवाई। इस तकनीक से पराली को बारीक काटकर खेत में ही मिला दिया जाता है। इसके बाद केल्टिवेटर की मदद से पराली मिट्टी में मिक्स हो जाती है, जिससे खेत तुरंत अगली फसल के लिए तैयार हो जाता है।

उन्होंने कहा, "यह तकनीक बहुत प्रभावी है। इससे समय, मेहनत और पर्यावरण तीनों की बचत होती है।"

इस तकनीक में प्रति एकड़ ४०० रुपए अतिरिक्त खर्च होता है, लेकिन इसके लाभ कई गुना हैं। पराली सड़कर खाद बनती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल की पैदावार में इजाफा होता है।

करनाल के कृषि उप निदेशक डॉ. वजीर सिंह ने बताया, "जिले में अब तक ६० प्रतिशत धान की कटाई हो चुकी है, जिसमें से ४० प्रतिशत पराली का प्रबंधन किया जा चुका है। जिला प्रशासन ने ४०० से अधिक टीमें बनाई हैं, जो किसानों को जागरूक कर रही हैं। पराली प्रबंधन के लिए इन-सीटू (खेत में मिलाना) और एक्स-सीटू (खेत से बाहर प्रबंधन) तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। विभाग द्वारा पराली प्रबंधन यंत्रों पर ५० प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। साथ ही, पराली न जलाने वाले किसानों को प्रति एकड़ १,२०० रुपए का अनुदान दिया जा रहा है।"

उन्होंने कहा, "पराली को गांठों में बांधकर या मिट्टी में मिलाकर किसान लाभ कमा सकते हैं। यह मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ाता है।"

किसान सुनील कुमार ने भी पराली प्रबंधन को अपनाने की वकालत की। उन्होंने कहा, "पहले पराली जलाने से हवा जहरीली हो जाती थी और धुंध छा जाती थी। अब नई तकनीक से न केवल पर्यावरण सुरक्षित है, बल्कि खेत की मिट्टी भी मजबूत हो रही है।" उन्होंने अन्य किसानों से अपील की कि सभी पराली जलाने की बजाय प्रबंधन तकनीकों को अपनाएं।

Point of View

बल्कि यह कृषि उत्पादन में सुधार लाने का भी एक प्रभावी उपाय है। सरकार और प्रशासन के सहयोग से किसान अपनी पुरानी आदतों को बदलकर नवाचार की ओर बढ़ रहे हैं। यह न केवल किसानों के लिए, बल्कि देश के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।
NationPress
16/10/2025

Frequently Asked Questions

पराली जलाने से क्या नुकसान होता है?
पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, यह मिट्टी की उर्वरता को भी नुकसान पहुंचाता है।
नए पराली प्रबंधन तकनीक के क्या फायदे हैं?
नए तकनीकों से न केवल पराली का सही प्रबंधन होता है, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाता है और फसल उत्पादन में इजाफा करता है।
क्या सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए सहायता देती है?
हाँ, सरकार पराली प्रबंधन यंत्रों पर ५० प्रतिशत सब्सिडी और पराली न जलाने वाले किसानों को प्रति एकड़ १,२०० रुपए का अनुदान देती है।