क्या 'शारीरिक संबंध' बलात्कार के समान है? दिल्ली हाईकोर्ट ने पोक्सो मामले में एक व्यक्ति को बरी किया

Click to start listening
क्या 'शारीरिक संबंध' बलात्कार के समान है? दिल्ली हाईकोर्ट ने पोक्सो मामले में एक व्यक्ति को बरी किया

सारांश

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि 'शारीरिक संबंध' शब्द बलात्कार या यौन उत्पीड़न को परिभाषित नहीं करता। अदालत ने एक व्यक्ति को पोक्सो मामले में बरी किया, यह कहते हुए कि पीड़िता द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द अत्यधिक अस्पष्ट है। जानिए इस अदालती फैसले का महत्त्व क्या है।

Key Takeaways

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत एक व्यक्ति को बरी किया।
  • पीड़िता द्वारा इस्तेमाल किया गया 'शारीरिक संबंध' शब्द अस्पष्ट था।
  • अदालत ने कहा कि इस शब्द को बलात्कार का प्रमाण नहीं माना जा सकता।
  • साक्ष्य की स्पष्टता और ठोस सबूत की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
  • निचली अदालत की प्रक्रिया में कमी पाई गई।

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता द्वारा इस्तेमाल किया गया 'शारीरिक संबंध' शब्द इतना अस्पष्ट था कि इसे बलात्कार या यौन उत्पीड़न का सबूत नहीं माना जा सकता।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने कहा, "इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, 'शारीरिक संबंध' शब्द का प्रयोग, किसी भी सहायक साक्ष्य के बिना, यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अभियोजन पक्ष अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम है।"

अपीलकर्ता राहुल उर्फ भूपिंदर वर्मा को अपनी 16 वर्षीय चचेरी बहन के साथ शादी का झांसा देकर कथित तौर पर यौन संबंध बनाने के आरोप में निचली अदालत ने 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

घटना के लगभग डेढ़ साल बाद, मार्च 2016 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

न्यायमूर्ति ओहरी ने अपने फैसले में कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का पर्याप्त स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था।

अदालत ने कहा कि ठोस कारणों के अभाव में घटना की सूचना देने में डेढ़ साल की देरी महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसा कोई साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं है जो यह साबित करे कि घटना के बाद से लेकर एफआईआर दर्ज होने तक वह बोलने में सक्षम नहीं थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता ने आरोपी द्वारा शादी से इनकार करने पर जहर खा लिया था, जिसके बाद उसकी आवाज चली गई थी और शिकायत तब दर्ज की गई जब वह बोलने में सक्षम हो गई।

हालांकि, न्यायमूर्ति ओहरी को इस दावे की पुष्टि के लिए कोई चिकित्सीय साक्ष्य नहीं मिला। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो यह साबित करे कि घटना के बाद से लेकर एफआईआर दर्ज होने तक वह बोलने में सक्षम नहीं थी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि न तो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और न ही पोक्सो अधिनियम 'शारीरिक संबंध' शब्द को परिभाषित करता है, और गवाही में इसका उपयोग मात्र स्वचालित रूप से बलात्कार या यौन उत्पीड़न के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है।

कोर्ट ने सवाल किया कि क्या शारीरिक संबंध जैसे शब्द का इस्तेमाल अपने आप में बलात्कार या यौन उत्पीड़न का मतलब समझा जाएगा, या फिर इस शब्द को बलात्कार जैसे अपराध से जोड़ने के लिए और स्पष्ट विवरण या सबूत की जरूरत होगी?

दिल्ली उच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति ओहरी ने कहा कि 'शारीरिक संबंध' शब्द को स्वचालित रूप से यौन संबंध में नहीं बदला जा सकता, यौन हमले की तो बात ही छोड़ दीजिए।

पीठ ने कहा कि निचली अदालत और अभियोजन पक्ष पीड़िता से उसकी गवाही के दौरान स्पष्टता प्राप्त करने में विफल रहे।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत, विशेष रूप से कमजोर गवाहों के मामले में प्रासंगिक तथ्यों का पता लगाने या उचित प्रमाण प्राप्त करने के लिए कुछ प्रश्न पूछना न्यायालय का वैधानिक कर्तव्य है।

इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताते हुए न्यायमूर्ति ने दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को यदि किसी अन्य मामले में आवश्यक न हो, तो तुरंत हिरासत से रिहा किया जाए।

Point of View

NationPress
21/10/2025

Frequently Asked Questions

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला किस मामले से संबंधित है?
यह फैसला यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के अंतर्गत एक व्यक्ति को बरी करने से संबंधित है।
क्या 'शारीरिक संबंध' शब्द बलात्कार का संकेत हो सकता है?
'शारीरिक संबंध' शब्द को अदालत ने बलात्कार या यौन उत्पीड़न के लिए पर्याप्त नहीं माना।
इस मामले में पीड़िता की स्थिति क्या थी?
पीड़िता ने शादी के झांसे में यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था, लेकिन अदालत ने इसे अस्पष्ट बताया।
क्या इस फैसले से यौन अपराधों के मामलों पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
यह फैसला यौन अपराधों के मामलों में साक्ष्य की स्पष्टता की आवश्यकता को उजागर करता है।
अदालत ने किस आधार पर व्यक्ति को बरी किया?
अदालत ने कहा कि 'शारीरिक संबंध' शब्द बलात्कार या यौन उत्पीड़न का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है।