क्या सोनिया गांधी ने केंद्र पर मनरेगा को समाप्त करने का आरोप लगाया है, 'भयानक परिणामों' की चेतावनी दी है?
सारांश
Key Takeaways
- सोनिया गांधी ने केंद्र पर मनरेगा को समाप्त करने का आरोप लगाया है।
- उन्होंने ग्रामीण जनसंख्या पर इसके संभावित भयानक परिणामों की चेतावनी दी है।
- नया कानून, 'विकसित भारत गारंटी', मनरेगा का स्थान ले रहा है।
- कांग्रेस ने इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजने की मांग की थी।
- सरकार के अनुसार, नया कानून 125 दिनों की रोजगार गारंटी देता है।
नई दिल्ली, 22 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की प्रमुख सोनिया गांधी ने सोमवार को केंद्र सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार जानबूझकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को समाप्त करने की कोशिश कर रही है और चेतावनी दी कि यदि इसमें बदलाव किया गया तो यह भारत की ग्रामीण जनसंख्या के लिए बेहद गंभीर परिणाम लाएगा।
यह टिप्पणी तब आई जब संसद ने विपक्ष के कड़े विरोध के बीच विकसित भारत गारंटी फॉर एम्प्लॉयमेंट एंड लाइवलीहुड मिशन (ग्रामीण) बिल ('वीबी-जी राम जी') को पास किया।
सोनिया गांधी ने एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार में छपे लेख में कहा कि 2005 में यूपीए सरकार के तहत लागू किया गया मनरेगा, जो काम के संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित करता था, को 'बिना किसी चर्चा या संसदीय प्रक्रिया का सम्मान किए' समाप्त किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का नाम हटाना तो सिर्फ शुरुआत है। उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा सोशल सिक्योरिटी प्रोग्राम के लिए गहरे विनाश का प्रतीक बताया।
सोनिया गांधी के अनुसार, मनरेगा को समाप्त करने की कोशिश रातों-रात नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने इसे 'धीरे-धीरे खत्म करने' की रणनीति अपनाई है, जैसे 'बजट में ठहराव', 'भुगतान में देरी' और 'अधिकार छीनने वाली तकनीक' के माध्यम से इस योजना को कमजोर किया जा रहा है।
कांग्रेस ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की मांग की थी, लेकिन इसके बावजूद यह कानून पास हो गया। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद यह कानून बन गया।
सोनिया गांधी ने कहा कि नया कानून एक वैधानिक रोजगार गारंटी को एक नौकरशाही और मनमाने कार्यक्रम से बदल देता है, जिससे ग्रामीण रोजगार सहायता का स्वरूप मौलिक रूप से बदल जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि रोजगार योजना में अब बजट की सीमा लगा दी गई है, जो मनरेगा के मूल वादे पर सीधा हमला है। इसके अलावा, उन्होंने उन प्रावधानों पर जोर दिया जिनके अनुसार साल भर काम खत्म हो जाएगा और 60 बिना काम वाले दिन होंगे।
सोनिया गांधी ने कहा कि मोदी सरकार खर्च का एक बड़ा हिस्सा राज्यों पर डालकर इसे लागू करने में बाधा डाल रही है और चेतावनी दी कि इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति और खराब हो जाएगी।
कांग्रेस नेता ने कहा कि यह नया फ्रेमवर्क ग्राम सभाओं और पंचायतों को नजरअंदाज करता है और पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान से जुड़े टॉप-डाउन मॉडल को लाता है।
सरकार के इस दावे को खारिज करते हुए कि नई योजना से 125 दिनों तक रोजगार की गारंटी मिलेगी, उन्होंने इसे गुमराह करने वाला बताया।
सोनिया गांधी ने मनरेगा की भूमिका पर जोर दिया, विशेषकर ग्रामीण मजदूरी बढ़ाने और पलायन रोकने में। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के दौरान यह एक महत्वपूर्ण साधन था जिसके जरिए गरीब परिवारों को सहायता मिली।
उन्होंने इसे अधिकारों पर आधारित कानूनों पर एक बड़े हमले से जोड़ा, जिसमें सूचना, शिक्षा, वन अधिकार और भूमि अधिग्रहण से संबंधित कानून शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि मनरेगा ने महात्मा गांधी के सर्वोदय के विजन को साकार किया और इसके खत्म होना हमारी सामूहिक नैतिक विफलता है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।
इस बीच, राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा बिल की मंजूरी के बाद, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नए कानून के बारे में जानकारी दी और कहा कि मनरेगा के नाम पर जनता को गुमराह करने की जानबूझकर कोशिश की जा रही है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नया कार्यक्रम 125 दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी देता है और इसमें काम न मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने के प्रावधान को और मजबूत किया गया है।