क्या वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति उचित है?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।
- हुसैनी का कहना है कि धार्मिक समितियों में केवल अनुयायी होने चाहिए।
- पूजा स्थल अधिनियम का पालन आवश्यक है।
- सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिदों के सर्वेक्षण पर रोक लगाई है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
नई दिल्ली, 16 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नए वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से संबंधित जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने कहा कि इस निर्णय का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अदालत ने हमारे दृष्टिकोण का समर्थन किया है, जिसमें यह बताया गया था कि सरकार कार्यपालिका को असंवैधानिक शक्तियां दे रही है।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है, और इसका उल्लंघन देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है। हुसैनी ने सरकार से अपील की कि वह इस फैसले से सीख ले और भविष्य में संविधान की भावना के खिलाफ कदम न उठाए।
हालांकि, हुसैनी ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि यह उचित नहीं है। उनका कहना है कि किसी भी धार्मिक समिति में उस धर्म के अनुयायी ही होते हैं, और वे ही धार्मिक मामलों का संचालन करते हैं। इस दृष्टिकोण से, वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति समझ से परे है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत का अंतिम निर्णय आना अभी बाकी है, और इस बीच उनकी संस्था अपनी बात को न्यायालय में मजबूती से रखेगी।
इसके अलावा, पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के बावजूद देशभर में मस्जिदों के सर्वेक्षण पर भी हुसैनी ने चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है, जो एक स्वागतयोग्य कदम है। उन्हें उम्मीद है कि अदालत इस विषय पर सख्त और स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करेगी ताकि किसी भी धार्मिक स्थल पर अनावश्यक विवाद न खड़ा हो। हुसैनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि पूजा स्थल अधिनियम हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और सामाजिक शांति की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्विट्जरलैंड में बुर्का पहनने पर लगाए गए प्रतिबंध पर भी जमात-ए-इस्लामी हिंद ने कहा कि सभ्य दुनिया का मूल सिद्धांत यही है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म और परंपराओं का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। अगर कोई महिला अपनी इच्छा से बुर्का पहनना चाहती है, तो यह उसका अधिकार है। इसे प्रतिबंधित करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अनुचित अंकुश है।