क्या इब्राहीम अलकाजी ने भारतीय थिएटर को एक नई पहचान दी?

सारांश
Key Takeaways
- इब्राहीम अलकाजी ने भारतीय रंगमंच को नई दिशा दी।
- उन्होंने कई दिग्गज कलाकारों को तैयार किया।
- उनकी शिक्षण शैली अनोखी और प्रभावशाली थी।
- अलकाजी का समर्पण आज भी उनके शिष्यों में जीवित है।
- उनका योगदान भारतीय संस्कृति के लिए गर्व का विषय है।
नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। इब्राहीम अलकाजी भारतीय थियेटर के एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं, जिन्हें रंगमंच पर कई महान कलाकारों को तैयार करने वाले जादूगर के रूप में जाना जाता है। उनका व्यक्तित्व ऐसा है कि आज भी उनके शिष्य उनकी याद में भावुक हो जाते हैं। काम के प्रति उनका जुनून और अनुशासन ने उन्हें थिएटर की दुनिया में अमर बना दिया।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के पूर्व निदेशक इब्राहीम अलकाजी ने भारतीय थिएटर को एक नई दिशा दी और नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अनुपम खेर जैसे दिग्गजों को तैयार कर रंगमंच की दुनिया में अमरता हासिल की। अलकाजी का कला के प्रति समर्पण आज भी उनके शिष्यों के दिलों में जीवित है।
18 अक्टूबर 1925 को जन्मे अलकाजी के माता-पिता सऊदी अरब से थे। उनका परिवार भारत लौट आया। अलकाजी एक बड़े मुस्लिम परिवार में नौ भाई-बहनों में से एक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे से प्राप्त की। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी 1950 के दशक में शुरू हुई। उन्होंने कई नाटकों का निर्देशन किया। 1962 में वे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के प्रमुख बने और 1977 तक इस पद पर बने रहे। उनके नेतृत्व में एनएसडी ने आधुनिक भारतीय रंगमंच को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उनके नाटक धरमवीर भारती का 'अंधा युग', गिरिश कर्नाड के 'तुगलक' रंगमंच की दुनिया में मील का पत्थर साबित हुए। 1977 में एनएसडी छोड़ने के बाद भी वे सक्रिय रहे, लेकिन उन्होंने खुद को हमेशा 'काम तक सीमित' रखा, बिना किसी विवाद या मीडिया हलचल के।
उनका निधन 4 अगस्त 2020 को दिल्ली में 94 वर्ष की आयु में हुआ। थिएटर में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री शामिल हैं।
फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा था कि अलकाजी ने उन्हें अभिनय की आत्मा सिखाई। थिएटर की बारीकियों को सिखाते हुए अलकाजी अपने छात्रों को बताते थे कि रंगमंच केवल संवाद नहीं, बल्कि 'शरीर की भाषा' और 'भावनाओं का विस्फोट' है। उनकी कक्षाओं में शारीरिक व्यायाम और इम्प्रोवाइजेशन पर जोर दिया जाता था, जो उस समय अनोखा था। अलकाजी की प्रभावशाली शख्सियत और शिक्षण शैली ने न केवल भारतीय रंगमंच को नई दिशा दी, बल्कि असंख्य कलाकारों के जीवन को भी प्रेरित किया।
अभिनेता गोविंद नामदेव ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में अलकाजी से अपनी पहली मुलाकात के यादगार पल साझा किए। उन्होंने कहा कि मेरी अलकाजी साहब से मुलाकात तब हुई, जब मैंने एनएसडी जॉइन किया था। उस समय पंकज कपूर जैसे सीनियर्स और अन्य पुराने छात्रों से भी मुलाकात हुई। अलकाजी साहब का संबोधन करने का अंदाज अद्भुत था।
वे आंखों में आंखें डालकर बात करते थे, जिससे सामने वाला सम्मोहित हो जाता था। उनका बोलने का ढंग इतना प्रभावशाली था कि हम सकपका से जाते थे। जब वे गाड़ी से उतरकर चलते थे तो उनके आसपास सन्नाटा सा छा जाता था। उनकी मौजूदगी ही एक अलग आभा रचती थी।