क्या आईसी-814 हाईजैक: 26 साल पहले का वो भयावह संकट आज भी झकझोर देता है, तीन आतंकियों की रिहाई?
सारांश
Key Takeaways
- 1999 में आईसी-814 का हाईजैक हुआ था।
- उड़ान में 190 यात्रियों का जीवन दांव पर था।
- आतंकवादियों ने 36 आतंकवादियों की रिहाई की मांग की।
- बातचीत 27 दिसंबर को शुरू हुई।
- 31 दिसंबर को सभी बंधकों को रिहा किया गया।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष 1999, 24 दिसंबर की शाम... काठमांडू से नई दिल्ली आ रही इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 ने जैसे ही उड़ान भरी, किसी को यह नहीं पता था कि यह यात्रा सबसे भयावह बंधक संकटों में से एक बन जाएगी। यह विमान 190 यात्रियों और चालक दल के साथ 31 दिसंबर तक उड़ान भरता रहा। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया।
24 दिसंबर को शाम 4 बजे आईसी-814 ने काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरी। इसके बाद, जब विमान भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश कर रहा था, तो हथियारों से लैस पांच आतंकवादियों ने विमान को हाईजैक कर लिया। नकाबपोश आतंकवादी कॉकपिट में घुस आए और पायलट से विमान को लाहौर की ओर मोड़ने को कहा। बाद में, लाहौर में उतरने की अनुमति न मिलने पर इसे अमृतसर के राजा सांसी एयरपोर्ट पर उतारा गया।
ईंधन भरने में देरी से आतंकवादी बौखला गए। धमकियां दी गईं कि यदि विमान तुरंत नहीं उड़ान भरेगा, तो यात्रियों को मार दिया जाएगा। इसी दौरान आतंकियों ने यात्रियों के साथ मारपीट शुरू की, जिसमें 25 वर्षीय रुपिन कत्याल को चाकू मारा गया, जिनकी बाद में मृत्यु हो गई। इसके बाद, अमृतसर से बिना ईंधन भरे विमान को उड़ाने का आदेश दिया गया। बाद में, पाकिस्तानी अधिकारियों की अनुमति मिलने पर विमान लाहौर में उतरा और वहां ईंधन भरा गया। इसके बाद आतंकियों ने विमान को काबुल ले जाने का निर्देश दिया, लेकिन वहां प्रवेश नहीं मिला और विमान 25 दिसंबर की तड़के दुबई के अल मिनहाद एयर बेस पर उतरा।
आतंकवादियों ने दुबई में 27 यात्रियों को रिहा किया और रुपिन कत्याल का शव सौंपा। इसके कुछ घंटे बाद, विमान ने फिर उड़ान भरी और 25 दिसंबर की सुबह कंधार पहुंचा, जो उस समय तालिबान के नियंत्रण में था। यहां विमान को तालिबान के सशस्त्र लड़ाकों ने घेर लिया। कंधार में यात्रियों को खाना-पानी तो मिला, लेकिन विमान के भीतर हालात बदतर थे। संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने तालिबान और आतंकियों से संपर्क कर बंधकों के साथ मानवीय व्यवहार करने की अपील की। 27 दिसंबर को भारत ने अपने वार्ताकारों और खुफिया अधिकारियों की टीम कंधार भेजी और उसी दिन बातचीत शुरू हुई।
आतंकियों की मांगें लगातार बदलती रहीं। शुरुआत में उन्होंने यात्रियों की रिहाई के बदले कुख्यात आतंकी मसूद अजहर की रिहाई मांगी। फिर मांगों की सूची बढ़ती गई। आतंकियों ने यात्रियों की रिहाई के बदले 36 आतंकवादियों की रिहाई, साजिद अफगानी का शव और 20 करोड़ डॉलर नकद की मांग रखी। तालिबान ने नकद राशि और शव की मांग को गैर-इस्लामिक बताते हुए खारिज कर दिया। आखिरकार सौदा तीन नामों पर आकर रुका और ये नाम थे… मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक जरगर। हर मांग का केंद्र मसूद अजहर की रिहाई थी।
31 दिसंबर 1999 को भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह तीनों आतंकियों को लेकर कंधार पहुंचे। इसके बदले में सभी शेष बंधकों को रिहा कर दिया गया। आतंकियों और रिहा किए गए कैदियों को तालिबान ने जाने की अनुमति दे दी। सात दिन बाद यह संकट समाप्त हुआ। उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे आतंकवाद का क्रूर चेहरा बताया और कहा कि यह मानव जीवन और अधिकारों के प्रति घोर अवमानना है। जांच शुरू हुई और मुंबई से कई संदिग्ध गिरफ्तार किए गए। सीबीआई ने बताया कि इस अपहरण की साजिश 1998 में रची गई थी। 2008 में तीन आरोपियों को उम्रकैद हुई, लेकिन अधिकांश आरोपी और अपहरणकर्ता पाकिस्तान में छिपे बताए गए।
बाद में आईसी-814 विमान 1 जनवरी 2000 को भारत लौटा। 2002 में इसे सेवा से हटा दिया गया और अगले वर्ष स्क्रैप कर दिया गया।