क्या आईएनएसवी कौंडिन्य की पहली यात्रा शुरू हो गई? पीएम मोदी ने डिजाइनरों, कारीगरों और भारतीय नौसेना को दी बधाई
सारांश
Key Takeaways
- आईएनएसवी कौंडिन्य ने पहली यात्रा शुरू की।
- यह जहाज भारतीय नौसेना द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित है।
- प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी सराहना की।
- यह यात्रा प्राचीन समुद्री मार्गों पर होगी।
- कौंडिन्य भारतीय समुद्री विरासत का प्रतीक है।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय नौसेना का सेलिंग वेसल कौंडिन्य, यह एक स्वदेशी पारंपरिक सिलाई वाला सेलिंग जहाज है। यह 29 दिसंबर को गुजरात के पोरबंदर से ओमान के मस्कट के लिए अपनी पहली विदेशी यात्रा पर रवाना हुआ। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह देखकर खुशी हुई कि आईएनएसवी कौंडिन्य पोरबंदर से अपनी पहली यात्रा पर निकल रहा है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पीएम मोदी ने कहा कि प्राचीन भारतीय सिलाई वाली जहाज बनाने की तकनीक से निर्मित यह जहाज भारत की समृद्ध समुद्री परंपराओं की पहचान है। मैं इस अद्वितीय जहाज को बनाने में योगदान देने वाले डिजाइनरों, कारीगरों, जहाज निर्माणकर्ताओं और भारतीय नौसेना को बधाई देता हूँ।
पीएम मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि आईएनएसवी कौंडिन्य पोरबंदर से मस्कट, ओमान के लिए अपनी पहली यात्रा पर निकल रही है। प्राचीन भारतीय सिलाई वाली जहाज बनाने की तकनीक से बनी यह जहाज भारत की समृद्ध समुद्री परंपराओं को दर्शाती है।
उन्होंने आगे कहा कि मैं चालक दल को सुरक्षित और यादगार यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं, क्योंकि वे खाड़ी क्षेत्र और उससे आगे भारत के ऐतिहासिक संबंधों को फिर से ताजा कर रहे हैं।
पीएम ने कहा कि यह ऐतिहासिक अभियान भारत के प्राचीन समुद्री विरासत को एक जीवित समुद्री यात्रा के माध्यम से पुनर्जीवित करने, समझने और उसका जश्न मनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
इस जहाज को वेस्टर्न नेवल कमांड के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन ने भारत में ओमान सल्तनत के राजदूत महामहिम इस्सा सालेह अल शिबानी और भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों तथा विशिष्ट मेहमानों की उपस्थिति में औपचारिक रूप से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।
आईएनएसवी कौंडिन्य को पारंपरिक सिलाई वाली जहाज बनाने की तकनीकों का उपयोग करते हुए तैयार किया गया है, जिसमें प्राकृतिक सामग्री और सदियों पुराने तरीकों का इस्तेमाल किया गया है। ऐतिहासिक स्रोतों और तस्वीरों के प्रमाणों से प्रेरित, यह जहाज भारत की स्वदेशी जहाज निर्माण, नाविकता और समुद्री नेविगेशन की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करता है।
यह यात्रा उन प्राचीन समुद्री मार्गों पर पुनः चलेगी जो कभी भारत के पश्चिमी तट को ओमान से जोड़ते थे, जिससे हिंद महासागर में व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सभ्यताओं के बीच संवाद होता था।