क्या आप जानते हैं जंबुकेश्वर मंदिर का इतिहास और विशेषताएँ?

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क्या आप जानते हैं जंबुकेश्वर मंदिर का इतिहास और विशेषताएँ?

सारांश

जंबुकेश्वर मंदिर, जो लगभग 1,800 वर्ष पुराना है, तमिलनाडु के त्रिची में स्थित है। यह जल तत्व का प्रतीक है और अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। जानें इस प्राचीन शिवालय की पौराणिक कथाएं और विशेषताएँ।

Key Takeaways

  • जंबुकेश्वर मंदिर लगभग 1,800 वर्ष पुराना है।
  • यह मंदिर पंच भूत स्थलों में से एक है।
  • जलधारा के कारण शिवलिंग हमेशा जल में डूबा रहता है।
  • यहां देवी अकिलंदेश्वरी की विशाल मूर्ति है।
  • यह मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है।

त्रिची, 5 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सावन का महीना, जो विश्व के नाथ को समर्पित है, अपने आप में एक अद्वितीय अनुभव है। इस दौरान, देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यह महीना केवल देवाधिदेव की भक्ति में ही नहीं, बल्कि उन प्राचीन मंदिरों के इतिहास को जानने का अवसर भी है, जो सैकड़ों वर्षों से लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। ऐसे ही एक प्राचीन शिवालय का नाम है, जंबुकेश्वर मंदिर, जो तमिलनाडु के त्रिची में स्थित है और लगभग 1,800 वर्ष पुराना है।

जंबुकेश्वर मंदिर अपनी आध्यात्मिकता, अद्भुत स्थापत्य कला और कई रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर पंच भूत स्थलों में से एक है, जो जल तत्व का प्रतीक है। यहां का शिवलिंग हमेशा जल में आंशिक रूप से डूबा रहता है।

इस मंदिर का निर्माण चोल वंश के राजा कोकेंगानन ने लगभग 1,800 साल पहले कराया था। यह मंदिर पंच महा तत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का प्रतिनिधित्व करता है। जंबुकेश्वर मंदिर जल तत्व का प्रतीक है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग के नीचे एक भूमिगत जल धारा बहती है, जो यहां हमेशा नमी बनाए रखती है। इस जल धारा के कारण, स्थानीय लोग इसे 'अप्पू स्थलम' (जल का स्थान) भी कहते हैं।

मंदिर से संबंधित पौराणिक कथाएं भी हैं, जहां देवी पार्वती ने भगवान शिव की तपस्या का मजाक उड़ाया था। शिव ने पार्वती को पृथ्वी पर तपस्या करने का निर्देश दिया। उस समय माता पार्वती ने अकिलंदेश्वरी के रूप में त्रिची के जंबू वन में कावेरी नदी के किनारे एक शिवलिंग बना कर तपस्या की।

शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और ज्ञान प्रदान किया। यहां पूजा-पाठ में पुजारी वस्त्र पहनते हैं, क्योंकि यही वह स्थान है जहां पार्वती ने साधना की थी।

तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, जंबुकेश्वर मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। इसमें पांच प्रांगण हैं, जिनमें से पांचवां प्रांगण विशाल दीवारों से घिरा है, जिसे 'विबुडी प्रकाश' कहा जाता है। कावेरी नदी के किनारे बसा यह मंदिर श्रीरंगम के प्रसिद्ध रंगनाथस्वामी मंदिर से मात्र 2 किमी दूर है।

नेशनल पोर्टल ऑफ इंडिया के अनुसार, जंबुकेश्वर मंदिर की उत्कृष्ट स्थापत्य कला इसे विशाल रंगनाथस्वामी मंदिर से भी अलग बनाती है। यह मंदिर उस हाथी के नाम पर रखा गया है, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने यहां भगवान शिव की पूजा की थी। शिवलिंग को एक प्राचीन जम्बू वृक्ष के नीचे स्थापित किया गया है।

मंदिर प्रांगण में देवी अकिलंदेश्वरी की विशाल मूर्ति है। कथा के अनुसार, अकिलंदेश्वरी पहले अपने उग्र स्वभाव के लिए जानी जाती थीं, लेकिन आदि शंकराचार्य ने उन्हें 'थाडंगम' नामक कुंडल पहनाकर शांत किया। तब से वह भक्तों को शांति और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। मंदिर में विवाह समारोह नहीं होते, क्योंकि यहां महादेव ने माता पार्वती को गुरु के रूप में ज्ञान दिया था।

Point of View

बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है। यहां की वास्तुकला और पौराणिक कथाएं इसे एक विशेष स्थान प्रदान करती हैं। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास के अध्ययन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
NationPress
05/08/2025

Frequently Asked Questions

जंबुकेश्वर मंदिर कहाँ स्थित है?
जंबुकेश्वर मंदिर तमिलनाडु के त्रिची में स्थित है।
यह मंदिर कब बना था?
यह मंदिर लगभग 1,800 साल पहले चोल वंश के राजा कोकेंगानन द्वारा बनाया गया था।
जंबुकेश्वर मंदिर की विशेषता क्या है?
यह मंदिर जल तत्व का प्रतीक है और यहां का शिवलिंग हमेशा जल में डूबा रहता है।
क्या यहां विवाह समारोह होते हैं?
नहीं, इस मंदिर में विवाह समारोह नहीं होते हैं।
जंबुकेश्वर मंदिर का नाम किस पर रखा गया है?
यह मंदिर उस हाथी के नाम पर रखा गया है, जो यहां भगवान शिव की पूजा करता था।