क्या झारखंड हाईकोर्ट में राज्य सरकार पेसा नियमावली का ड्राफ्ट आज कैबिनेट में लाएगी?
सारांश
Key Takeaways
- पेसा नियमावली का मसौदा आज कैबिनेट में प्रस्तुत किया जाएगा।
- हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 13 जनवरी 2026 को तय की है।
- राज्य सरकार की देरी से आदिवासी अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।
- पेसा कानून का उद्देश्य आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों को सशक्त बनाना है।
- पेसा नियमावली का लागू न होना गंभीर चिंता का विषय है।
रांची, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया) अधिनियम, 1996 की नियमावली के अब तक लागू न होने पर दायर अवमानना याचिका पर मंगलवार को फिर से सुनवाई की। इस अवसर पर राज्य सरकार ने अदालत को सूचित किया कि आज दोपहर बाद होने वाली कैबिनेट बैठक में पेसा नियमावली का मसौदा प्रस्तुत किया जाएगा।
सरकार ने इस प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए समय की मांग की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी 2026 को तय की है। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक पेसा नियमावली को अंतिम रूप नहीं दिया जाता, तब तक राज्य में बालू घाटों एवं अन्य लघु खनिजों के आवंटन और नीलामी पर पहले से लगी रोक बनी रहेगी।
याद रहे कि इससे पहले 13 नवंबर को हुई सुनवाई में झारखंड हाईकोर्ट ने पेसा कानून को लागू करने के लिए राज्य सरकार को तीन सप्ताह के अंदर स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। उस समय पंचायती राज विभाग के सचिव व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हुए थे। सरकार ने बताया था कि पेसा नियमावली का मसौदा कैबिनेट कोऑर्डिनेशन कमेटी को भेजा गया था, जहां कुछ तकनीकी त्रुटियां पाई गई थीं। इनका समाधान कर संशोधित मसौदा फिर से कैबिनेट को भेजा जाएगा।
इससे पहले 9 सितंबर को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य में पेसा कानून लागू होने तक बालू घाट समेत सभी लघु खनिजों की नीलामी पर रोक लगा दी थी। अदालत ने उस समय कहा था कि पेसा नियमावली का न लागू होना 73वें संविधान संशोधन की भावना को कमजोर करता है और इसका प्रभाव अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और स्थानीय स्वशासन के अधिकारों पर पड़ता है।
अदालत ने पूर्व की सुनवाइयों में कहा था कि पेसा कानून का उद्देश्य अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों, संसाधनों पर नियंत्रण और ग्राम सभा की निर्णायक भूमिका को सशक्त करना है, लेकिन झारखंड के गठन के कई वर्षों बाद भी इसकी नियमावली का अधिसूचनात्मक न होना एक गंभीर चिंता है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 1996 में पेसा अधिनियम को लागू किया था। झारखंड में वर्ष 2019 और 2023 में इसकी नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया गया, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया गया। इस देरी के खिलाफ आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने पहले जनहित याचिका और बाद में अवमानना याचिका दायर की है।