क्या काशी में गोबर के दीयों से देव दीपावली की रोशनी बिखरेगी, महिला सशक्तीकरण का एक नया उदाहरण?

सारांश
Key Takeaways
- गोबर के दीये गंगा घाटों को सजाएंगे।
- महिलाएं सशक्तीकरण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं।
- स्वदेशी वस्तुओं की खरीद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- इको-फ्रेंडली दीये पर्यावरण की रक्षा करते हैं।
- देव दीपावली का धार्मिक महत्व है।
दभोई, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पूरे देश में दीपावली का पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा और उसके 15 दिन बाद काशी में देव दीपावली का उत्सव मनाने की तैयारी है।
काशी में देव दीपावली का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां हर साल गंगा नदी के घाटों को लाखों दीयों से सजाया जाता है। इस बार, इन घाटों को मिट्टी के दीयों के बजाय गोबर से निर्मित इको-फ्रेंडली दीयों से सजाया जाएगा। खास बात यह है कि ये दीये महिला सशक्तीकरण के प्रतीक बन रहे हैं।
दभोई के उम्मेद केंद्र में महिलाएं गोबर के दीये बनाने में जुटी हुई हैं, ताकि देव दीपावली के दिन गंगा घाटों को सजाया जा सके। ये दीये विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा बनाये जा रहे हैं। सोसाइटी फॉर इंडियन डेवलपमेंट, रेवुमंस वेलफेयर फाउंडेशन और वडोदरा के नरनारायण देव चैरिटेबल ट्रस्ट मिलकर इन इको-फ्रेंडली दीयों का निर्माण कर रहे हैं। साथ ही, ये संगठन महिलाओं को रोजगार के अवसर भी प्रदान कर रहे हैं। इन दीयों को दभोई से काशी के गंगा घाट पर भेजा जाएगा और दिवाली के मौके पर इनका उपयोग किया जाएगा।
संगठन ने स्वदेशी वस्तुओं की खरीद और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 3 लाख गोबर के दीये बनाने का लक्ष्य रखा है। संगठन की सदस्य अक्षिता फतेसिंह सोलंकी ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि गोबर के दीये काशी के घाटों को सजाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में स्वदेशी वस्तुओं की खरीद का आग्रह कर रहे हैं, इसलिए हम गोबर के दीये बनाकर महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि दीये बनाने का कार्य सिर्फ महिलाएं ही कर रही हैं, जबकि मशीनों की सहायता से भी यह काम किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि यदि दीये गंगा में प्रवाहित होते हैं, तो भी मां गंगा को कोई नुकसान नहीं होगा। उन्होंने इको-फ्रेंडली दीयों की अधिकतम खरीदारी का आग्रह किया है।
सनातन धर्म में देव दीपावली का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि असुर त्रिपुरासुर के अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने भगवान शिव की शरण ली थी। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया, जिसके बाद देवी-देवताओं ने प्रसन्न होकर काशी को दीयों से सजा दिया था। तब से काशी और गंगा घाटों पर देव दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है।