क्या कटिहार विधानसभा सीट पर भाजपा की वापसी होगी या जनता का मूड बदलेगा?

सारांश
Key Takeaways
- कटिहार विधानसभा सीट का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व है।
- यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है।
- 2025 के चुनाव में भाजपा और महागठबंधन के बीच टक्कर हो सकती है।
- स्थानीय मुद्दे इस बार चुनावी मूड को प्रभावित कर सकते हैं।
- कटिहार की साक्षरता दर 52.24 प्रतिशत है।
नई दिल्ली, 2 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में कटिहार विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार भाजपा अपनी ऐतिहासिक जीत को बनाए रख पाएगी या जनता बदलाव की ओर अग्रसर है? इस सीट का ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक महत्व इसे एक दिलचस्प मुकाबले का केंद्र बना रहा है।
कटिहार सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं है। यह ऐतिहासिक विरासत और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का गढ़ भी है। यह क्षेत्र कभी कोशी अंचल के प्रमुख जमींदारों, चौधरी परिवार के अधीन था, जिनके संस्थापक खान बहादुर मोहम्मद बख्श थे। उनके पास कटिहार में लगभग 15 हजार एकड़ और पूर्णिया में 8,500 एकड़ भूमि थी।
कटिहार जिले का गठन 2 अक्टूबर 1973 को पूर्णिया से अलग कर किया गया था, लेकिन इसका इतिहास इससे भी पुराना है। यह क्षेत्र महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा माना जाता है, जब वे मणिहारी में अपनी मणि खो बैठे थे। मुस्लिम शासन के दौरान ये क्षेत्र बख्तियार खिलजी और उसके उत्तराधिकारियों के अधीन रहा, और फिर अंग्रेजों के शासन में भी महत्वपूर्ण रहा।
कटिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यहां धान, जूट, मखाना, केले, मक्का और गेहूं जैसी फसलें उगाई जाती हैं। यहां दो पुराने जूट मिलों ने कभी औद्योगिक पहचान बनाई थी, लेकिन अब वे बंद हैं। हालाँकि, मखाना प्रोसेसिंग यूनिट्स और धान प्रसंस्करण उद्योग धीरे-धीरे उभर रहे हैं। इसके साथ ही कपड़ा बाजार, दवा व्यवसाय और साइकिल ट्रेडिंग जैसे क्षेत्र भी आर्थिक गतिविधियों में योगदान दे रहे हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार कटिहार जिले की जनसंख्या लगभग 30.7 लाख है, जिसमें साक्षरता दर केवल 52.24 प्रतिशत है। जिले में 16 प्रखंड, 3 उपखंड, 1547 गांव और 3 शहरी निकाय हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्र होने के बावजूद शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिक विकास की गति धीमी रही है, जो चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है।
कटिहार सीट पर 1957 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। तब से अब तक यहां कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव आए हैं, लेकिन पिछले दो दशकों से भाजपा का इस पर नियंत्रण बना हुआ है। वर्तमान विधायक तार किशोर प्रसाद हैं, जिन्होंने 2020 में जीत हासिल कर बिहार के उपमुख्यमंत्री पद तक का सफर तय किया। हालांकि, 2022 में नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन में जाने के बाद प्रसाद को इस पद से हटा दिया गया। फिर भी, उनके प्रभाव और संगठनात्मक क्षमता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
2025 के विधानसभा चुनाव में कटिहार में भाजपा और महागठबंधन के बीच मुकाबला होने की संभावना है। भाजपा एक बार फिर तार किशोर प्रसाद को टिकट दे सकती है, जो क्षेत्र में मजबूत संगठन और जातीय समीकरणों का लाभ उठाने की स्थिति में हैं। वहीं, राजद, कांग्रेस और जदयू जैसे दल मिलकर इस सीट पर भाजपा को चुनौती देने की तैयारी में हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी इस सीट पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है, और विपक्षी दल इसी कार्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं।
हालांकि भाजपा का यहां गहरा जनाधार है, लेकिन स्थानीय मुद्दे जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, बंद मिलों की बहाली, खराब स्वास्थ्य सेवाएं और किसानों की समस्याएं इस बार चुनावी मूड को प्रभावित कर सकती हैं। अगर विपक्ष इन मुद्दों को सही तरीके से उठाता है और उम्मीदवार चयन में रणनीति अपनाता है, तो मुकाबला रोचक हो सकता है।
कटिहार विधानसभा सीट इस बार भी सियासी रणभूमि का एक बड़ा केंद्र बनने जा रही है। एक ओर भाजपा अपनी 20 साल की पकड़ को बनाए रखने के लिए तैयार हो रही है, तो दूसरी ओर महागठबंधन इस सीट को भाजपा से छीनने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।