क्या केदारेश्वर गुफा मंदिर दुनिया के अंत का प्रतीक है, यहां कलयुग का आखिरी स्तंभ भी मौजूद है?
सारांश
Key Takeaways
- केदारेश्वर गुफा मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है।
- मंदिर में चार स्तंभों का प्रतीकात्मक महत्व है।
- यह जगह ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध है।
- गुफा में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है।
- प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह मंदिर भक्तों को आकर्षित करता है।
नई दिल्ली, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कुछ मंदिरों की बाहरी सादगी के पीछे गहरी मान्यताएं छिपी होती हैं। भारत के अनेक मंदिर अपने अंदर ऐतिहासिक संदर्भ और भविष्य के संकेत समेटे हुए हैं।
महाराष्ट्र के हरिश्चंद्रगढ़ किले में स्थित केदारेश्वर मंदिर इन्हीं अद्भुत मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति इसी मंदिर से हुई थी और इसका अंत भी यहीं होगा। इस मंदिर में स्थित स्तंभ कलयुग के अंत का प्रतीक माने जाते हैं।
मंदिर की कोई विशिष्ट वास्तुकला नहीं है और इसे भव्य बनाने में किसी प्रकार का खर्च नहीं किया गया है, फिर भी भक्त दूर-दूर से भगवान शिव के केदारेश्वर रूप के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर एक गुफा के भीतर स्थित है, जहां सालभर पानी भरा रहता है। मंदिर के चारों ओर का पानी मौसम के अनुसार अपने तापमान में परिवर्तन करता रहता है। सर्दियों में पानी गुनगुना और गर्मियों में बर्फ जितना ठंडा हो जाता है।
कहा जाता है कि मंदिर के चार स्तंभ सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग का प्रतीक हैं। इनमें से तीन स्तंभ टूट चुके हैं और केवल एक स्तंभ शेष है। ऐसा कहा जाता है कि यह बचा हुआ स्तंभ कलयुग का प्रतीक है, और जब कलयुग का अंत होगा, तब यह स्तंभ भी टूटकर गिर जाएगा, जिससे पृथ्वी का विनाश होगा।
मंदिर तक पहुंचने का मार्ग अत्यंत कठिन है, जो पहाड़ियों के माध्यम से गुजरता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई पक्का रास्ता नहीं है, और भक्त ट्रेकिंग के माध्यम से ही मंदिर तक पहुंचते हैं।
गुफा के मध्य में 5 फीट का शिवलिंग स्थापित है, जिसे स्वयंभू माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहां तपस्या के बाद प्रकट हुए थे। गुफा के ऊपर मंदिर का गोपुरम पत्थरों की सहायता से निर्मित है।
इसका निर्माण छठी शताब्दी में कलचुरी राजवंश द्वारा किया गया था। 11वीं सदी में गुफाओं की खोज हुई। मंदिर के आस-पास की प्रकृति का दृश्य भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।