क्या डॉक्टर के. लक्ष्मी बाई ने अपने 100वें जन्मदिन पर एम्स भुवनेश्वर को 3.4 करोड़ रुपए दान किए?
सारांश
Key Takeaways
- डॉक्टर के. लक्ष्मी बाई ने 3.4 करोड़ रुपए का दान किया।
- उनका यह कार्य मानवता के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
- मुख्यमंत्री ने इस दान को प्रेरणादायक बताया।
भुवनेश्वर, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने रविवार को ब्रह्मपुर की 100 वर्षीय डॉक्टर के. लक्ष्मी बाई की उदारता की प्रशंसा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि लक्ष्मी बाई ने अपने 100वें जन्मदिन के अवसर पर ऑन्कोलॉजी अनुसंधान के लिए एम्स भुवनेश्वर को अपनी जीवन भर की कमाई दान कर दी।
मुख्यमंत्री ने उनके दान को मानवता के प्रति समर्पण और जनसेवा का एक प्रेरणादायक कार्य बताया।
अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर मुख्यमंत्री ने लिखा, "मुझे के. लक्ष्मी बाई के 100वें जन्मदिन के अवसर पर उनके इस असाधारण कार्य के बारे में पता चला। एम्स भुवनेश्वर में स्त्री रोग संबंधी ऑन्कोलॉजी पाठ्यक्रम स्थापित करने के लिए अपनी व्यक्तिगत सेविंग दान करना गहरी करुणा और जनसेवा का एक प्रेरक कार्य है।"
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी दशकों लंबी चिकित्सा सेवा सभी के लिए प्रेरणा है।
मुख्यमंत्री ने कहा, "सम्मान, देखभाल और महिला सशक्तिकरण की एक सच्ची अग्रदूत, उनकी दशकों की समर्पित चिकित्सा सेवा पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। उनके जैसे लोग एक स्वस्थ और अधिक सशक्त समाज के निर्माण के हमारे सामूहिक संकल्प को मजबूत करते हैं।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य सरकार सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
मुख्यमंत्री ने कहा, "ओडिशा को उनके उल्लेखनीय जीवन और मानवता के प्रति उनकी निस्वार्थ भक्ति पर बहुत गर्व है। महाप्रभु जगन्नाथ उन्हें अच्छे स्वास्थ्य, शक्ति और शांति प्रदान करें।"
प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ के. लक्ष्मी बाई ने शुक्रवार को अपने शताब्दी जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय संस्थान के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग को अपनी बचत के 3.4 करोड़ रुपए दान किए।
उनके इस नेक कार्य ने ओडिशा में तुरंत सुर्खियां बटोरीं और समाज के सभी वर्गों से उनकी व्यापक प्रशंसा हुई।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी शुक्रवार को शतायु डॉक्टर के. लक्ष्मी बाई के इस उदार कार्य की सराहना की। लक्ष्मी बाई 1945 में कटक स्थित श्रीराम चंद्र भंज मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पहले बैच की छात्रा थीं।
उन्होंने 1950 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और सुंदरगढ़ में एक सरकारी डॉक्टर के रूप में अपना करियर शुरू किया।
बाद में उन्होंने बुर्ला मेडिकल कॉलेज, कटक मेडिकल कॉलेज और बरहामपुर मेडिकल कॉलेज में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया, जहां से वे अंततः सेवानिवृत्त हुईं।