क्या 10 साल दिल्ली में काम करने के बाद भी केजरीवाल हार गए?

सारांश
Key Takeaways
- केजरीवाल के नोबेल पुरस्कार का दावा विवादास्पद है।
- कांग्रेस ने उनके शासन पर सवाल उठाए।
- जनता की राय महत्वपूर्ण है।
- हरियाणा में जिला अध्यक्षों का चयन प्रक्रिया जारी है।
- राजद के साथ गठबंधन में कोई समस्या नहीं है।
नई दिल्ली, 10 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नोबेल पुरस्कार वाले बयान पर राजनीति में हलचल मच गई है। केजरीवाल जिस 10 साल के शासन के लिए खुद को नोबेल पुरस्कार देने की बात कर रहे हैं, उस पर कांग्रेस ने तीखा जवाब दिया है।
कांग्रेस नेता बी.के. हरिप्रसाद ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने लिए पुरस्कार की मांग कैसे कर सकता है। यदि केजरीवाल ने 10 साल में दिल्ली की जनता के लिए मेहनत की है, तो विधानसभा चुनाव में वे क्यों हार गए? उनकी पार्टी तो सत्ता से बाहर हो गई, और उन्होंने नई दिल्ली सीट भी नहीं बचाई। हरिप्रसाद ने कहा कि जब नोबेल पुरस्कार की बात आती है, तो इसकी सच्चाई जानने के लिए दिल्ली की जनता से पूछना चाहिए। जनता ही बताएगी कि उन्हें नोबेल पुरस्कार
हरियाणा में जिला स्तर पर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के चयन के संबंध में उन्होंने बताया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने प्रत्येक ब्लॉक का दौरा करने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए हैं। सभी से बात की गई है और जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्षों के चयन के दिशा-निर्देशों का पालन किया जा रहा है। उन्होंने संभावना जताई कि जुलाई के अंत तक जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुना जाएगा।
बिहार में राजद के साथ तालमेल पर उन्होंने कहा कि पप्पू यादव या कन्हैया कुमार को ट्रक में चढ़ने नहीं दिया गया, यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह एक अंदरूनी मामला है। राजद के साथ तालमेल अच्छे से चल रहा है और मुझे नहीं लगता कि आगे कोई समस्या आएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 देशों की संसद को संबोधित करने पर उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है। लेकिन, जिन देशों की संसद को संबोधित किया गया, वहां किसी ने भी पाकिस्तान के खिलाफ आवाज नहीं उठाई।