क्या केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'कोलसेतु' विंडो को मंजूरी दी?
सारांश
Key Takeaways
- कोलसेतु नीति ने कोयला लिंकेज के लिए नई विंडो खोली है।
- इससे औद्योगिक उपयोग और निर्यात को सरल बनाया जाएगा।
- देश की एनर्जी सिक्योरिटी को मजबूत करने का प्रयास।
- आयातित कोयले पर निर्भरता कम होगी।
- वॉशड कोल की मांग को बढ़ावा मिलेगा।
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने शुक्रवार को कोलसेतु के तहत कोयला लिंकेज की नीलामी नीति को मंजूरी दी है। इस नीति में औद्योगिक उपयोग और निर्यात के लिए कोयले के उपयोग हेतु कोलसेतु नामक एक नई विंडो बनाई गई है, जो एनआरएस लिंकेज नीति का हिस्सा है। यह नई नीति सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र में किए जा रहे सुधारों की एक श्रृंखला को आगे बढ़ाती है।
इस निर्णय के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने एक पोस्ट में लिखा, "कैबिनेट ने कोलसेतु नीति को मंजूरी दी है, जिससे कोयले का आसान, कुशल और पारदर्शी उपयोग संभव होगा। इससे इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार होगा, देश में कोयले की उपलब्धता में बढ़ोतरी होगी और आयातित कोयले पर निर्भरता कम होगी। यह भारत की एनर्जी सिक्योरिटी को मजबूत करने और विकास को तेज करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"
ये नीतियां 2016 की एनआरएस (नॉन-रेगुलेटेड सेक्टर) लिंकेज नीलामी नीति में कोलसेतु नामक एक नई विंडो जोड़कर बनाई गई हैं, जिससे औद्योगिक उपयोग और निर्यात के लिए दीर्घकालिक कोयला लिंकेज का आवंटन संभव होगा। इसमें कोयले की आवश्यकता वाले सभी घरेलू खरीदार नीलामी में भाग ले सकते हैं। इस नई विंडो के अंतर्गत कोकिंग कोल की पेशकश नहीं की जाएगी।
इस नीति में एनआरएस के लिए कोयला लिंकेज की मौजूदा नीति में सुधार करते हुए, सीमेंट, स्टील (कोकिंग), स्पंज आयरन, और अन्य उद्योगों के लिए नए कोयला लिंकेज का आवंटन नीलामी के आधार पर किया जाएगा। एनआरएस के लिए कोयला आपूर्ति की वर्तमान व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता थी, ताकि देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और आयात पर निर्भरता कम की जा सके।
इस नई विंडो के तहत प्राप्त कोयला लिंकेज का उपयोग केवल स्वयं के उपयोग, निर्यात या अन्य उद्देश्यों के लिए होगा। कोयला लिंकेज होल्डर्स अपनी लिंकेज की मात्रा का 50 प्रतिशत तक कोयले का निर्यात करने के लिए पात्र होंगे। वॉशड कोल की मांग को देखते हुए, यह नीति धुले हुए कोयले की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक होगी और इससे आयात भी कम होगा।