क्या भारत का एक ऐसा चमत्कारी मंदिर है जहां राहु देव की मूर्ति पर दूध चढ़ाने से केतु ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है?

सारांश
Key Takeaways
- केतु का कुंडली में अच्छा होना जातक की इच्छा पूर्ति में मदद करता है।
- यह मंदिर भक्तों को केतु दोष से मुक्ति दिलाता है।
- भगवान गणेश की पूजा के द्वारा केतु के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।
- केतु के प्रभाव मंगल के समान होते हैं।
- दक्षिण भारत में यह मंदिर केतु की विशेष पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
नई दिल्ली, 19 जून (राष्ट्र प्रेस)। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली के नौ ग्रहों में से दो ग्रह राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। यदि कुंडली में राहु और केतु की स्थिति खराब हो, तो यह जातक के जीवन में कई परेशानियों का कारण बन सकते हैं। खासकर, कलयुग में इन दोनों ग्रहों का प्रभाव सबसे अधिक होता है।
इसके पीछे की वजह यह है कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार, केतु आध्यात्मिक जीवन, दुष्कर्म, दंड, छिपे हुए शत्रु, खतरे और गुप्त विद्या को नियंत्रित करता है। इसके अलावा, यह गहरी सोच, ज्ञान की आकांक्षा, आध्यात्मिक विकास, धोखाधड़ी और मानसिक रोग से भी संबंधित है। केतु, जातक के पिछले जन्म के कर्म का संकेतक भी माना जाता है और यह वर्तमान जीवन की स्थितियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यदि केतु कुंडली में शुभ स्थिति में हो, तो यह जातक की इच्छा पूर्ति और पेशेवर सफलता में मदद कर सकता है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार, कुंडली का शुभ केतु परिवार में समृद्धि लाता है और जातक को अच्छा स्वास्थ्य एवं धन प्रदान करता है। केतु का संबंध तीन नक्षत्रों, अश्विनी, मघा और मूल से है।
केतु ग्रह के स्वामी भगवान गणेश और अधिपति भगवान भैरव हैं। भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं और केतु के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए उनकी पूजा की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु का मुख्य दिन मंगलवार है, इसलिए केतु का प्रभाव मंगल के समान होता है।
दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां केतु की पूजा की जाती है। इस मंदिर में जाकर पूजा करने से जातक की कुंडली से केतु के नकारात्मक प्रभाव समाप्त होते हैं और उन्हें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
यह मंदिर तमिलनाडु के कीझापेरुमपल्लम गांव में स्थित है, जिसे नागनाथस्वामी मंदिर या केतु स्थली भी कहा जाता है। यह कावेरी नदी के तट पर बसा है और केतु देव को समर्पित है। यहाँ केतु को सांप के सिर और असुर के शरीर के साथ स्थापित किया गया है। यह स्थान वनगिरी के नाम से भी जाना जाता है और यह दक्षिण भारत के प्रमुख केतु मंदिरों में से एक है।
नागनाथस्वामी मंदिर का निर्माण चोल राजाओं ने करवाया था। यहाँ भगवान केतु उत्तर प्रहरम में पश्चिम की ओर मुख करके खड़े हैं। भगवान केतु दिव्य शरीर, पाँच सिर वाले सांप के सिर और भगवान शिव की पूजा करते हुए हाथ जोड़कर दिखाई देते हैं। यह एक महत्वपूर्ण मंदिर है जहां भक्तों को उनकी कुंडली में केतु दोष के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
मान्यता है कि केतु देव के इस मंदिर में राहु देव के ऊपर दूध चढ़ाया जाता है और केतु दोष से पीड़ित व्यक्ति द्वारा चढ़ाया गया दूध नीला हो जाता है। हालांकि यह प्रक्रिया रहस्य बनी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के लिए केतु ने इसी मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी, और तब शिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने यहां केतु को दर्शन दिए थे।