क्या आतंकवाद पर कांग्रेस की सोच केवल 'वोट बैंक' पर आधारित है? : प्रदीप भंडारी
सारांश
Key Takeaways
- आतंकवाद पर कांग्रेस की सोच पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
- भाजपा ने कांग्रेस पर वोट बैंक की राजनीति का आरोप लगाया है।
- मदनी के बयान ने सियासी हलचल पैदा की है।
नई दिल्ली, 23 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भारत में मुसलमानों के प्रति भेदभाव का आरोप लगाया है। मदनी के विवादित बयानों ने सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इसी बीच, कांग्रेस नेता उदित राज ने मदनी के बयान का समर्थन किया है। इसके चलते भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कांग्रेस पर तीखा हमला किया है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद पर कांग्रेस की सोच 'वोट बैंक' पर आधारित है।
भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि मदनी के बयान का कांग्रेस नेता द्वारा समर्थन करना यह दर्शाता है कि आतंकवाद पर कांग्रेस की सोच 'वोट बैंक' आधारित है।
भंडारी ने आरोप लगाया कि यही वह सोच है जिसके तहत सोनिया गांधी ने बाटला हाउस के आतंकियों के लिए आंसू बहाए थे।
उन्होंने आगे कहा कि अब कांग्रेस नेता और राहुल गांधी के करीबी उदित राज द्वारा मदनी के बयान को सही ठहराना इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस 'वोट बैंक' की राजनीति के लिए आतंकियों का समर्थन करने से भी पीछे नहीं हटती। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस कांग्रेस ने 26/11 आतंकी हमले को लेकर आरएसएस के खिलाफ झूठी थ्योरी गढ़ी थी, वही पार्टी आज खुले तौर पर ऐसे बयानों का समर्थन कर रही है। यह कांग्रेस की देशविरोधी राजनीति का एक और उदाहरण है।
इंडिया अलायंस का नेतृत्व समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को देने से जुड़े सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा के बयान पर भी प्रदीप भंडारी ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर सीधा हमला किया।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को देश की जनता तो क्या, विपक्षी दल भी अब गंभीरता से नहीं लेते। भंडारी ने दावा किया कि इंडिया अलायंस के भीतर ही राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर असहमति स्पष्ट है और बिहार में कांग्रेस नेता अपनी ही पार्टी की शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
भंडारी ने कहा कि पीएम मोदी ने कहा था कि बिहार में चुनाव परिणाम आने के बाद विपक्षी दलों में आपसी टकराव बढ़ेगा। उन्होंने राहुल गांधी को “पॉलिटिकल फेल्योर” बताते हुए कहा कि वह अब तक करीब 95 चुनाव हार चुके हैं, और विपक्षी दलों ने ही उन्हें अस्वीकार कर दिया है। जब विपक्ष के नेता ही राहुल गांधी को नेतृत्व के लायक नहीं मानते, तो देश की जनता उनका समर्थन क्यों करेगी।