क्या भारत चार स्तंभों के जरिए रोजमर्रा की जरूरतें सुनिश्चित करता है?: डॉ. पी.के. मिश्र

Click to start listening
क्या भारत चार स्तंभों के जरिए रोजमर्रा की जरूरतें सुनिश्चित करता है?: डॉ. पी.के. मिश्र

सारांश

क्या भारत चार स्तंभों के माध्यम से रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर रहा है? डॉ. पी.के. मिश्र ने मानवाधिकारों, गरिमा, और सुशासन के महत्व पर प्रकाश डाला। जानिए कैसे भारत में सामाजिक सुरक्षा और विकास के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

Key Takeaways

  • मानवाधिकार का अधिकार सभी के लिए महत्वपूर्ण है।
  • डिजिटल समावेशन अब मानवाधिकार का हिस्सा है।
  • सरकार ने २०१४ से अधिकारों को लागू करने पर जोर दिया है।
  • सुशासन दक्षता और पारदर्शिता पर आधारित है।
  • भविष्य में भारत में हर व्यक्ति को गरिमा और न्याय मिलना चाहिए।

नई दिल्ली, १० दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्र ने बुधवार को कहा कि विश्व मानवाधिकार दिवस भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ संवैधानिक आदर्श, लोकतांत्रिक संस्थाएं और सामाजिक मूल्य मिलकर मानव गरिमा को सुरक्षित और मजबूत बनाते हैं।

डॉ. मिश्र ने १९४८ की मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद २५(१) का उल्लेख किया, जिसमें भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा देखभाल और सामाजिक सुरक्षा सहित सम्मानजनक जीवन स्तर का अधिकार शामिल है।

उन्होंने याद दिलाया कि डॉ. हंसा मेहता ने घोषणापत्र में “सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं” वाक्यांश को शामिल करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो लैंगिक समानता के लिए ऐतिहासिक कदम था।

उन्होंने कहा कि आज मानवाधिकार केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक अधिकार, डिजिटल निजता, स्वच्छ पर्यावरण, तकनीकी न्याय और डिजिटल समावेशन भी इसका हिस्सा बन चुके हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि भारतीय सभ्यता में धर्म, न्याय, करुणा और सेवा जैसे विचार हमेशा से गरिमा और कर्तव्य पर बल देते रहे हैं। इन्हीं सिद्धांतों ने संविधान में सार्वभौमिक मताधिकार, मौलिक अधिकारों और शिक्षा, स्वास्थ्य व कल्याण पर केंद्रित निर्देशक सिद्धांतों को आकार दिया।

उन्होंने बताया कि २०१४ से सरकार ने अधिकारों को ज़मीन पर उतारने पर जोर दिया है। डिजिटल ढांचे, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और विकसित भारत संकल्प यात्रा ने सुनिश्चित किया है कि कोई भी पात्र लाभार्थी छूट न जाए।

उन्होंने दावा किया कि पिछले दशक में २५ करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं, जिसका प्रमाण उपभोग व्यय सर्वेक्षण २०२३-२४ में मिलता है।

उन्होंने एनएचआरसी से आग्रह किया कि विकसित भारत २०४७ के लक्ष्य के लिए जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय न्याय, डेटा संरक्षण, एल्गोरिथम निष्पक्षता, जिम्मेदार एआई, डिजिटल निगरानी और गिग वर्क से जुड़ी कमजोरियों को प्राथमिकता दे।

डॉ. मिश्र ने अंत में कहा कि सुशासन अपने आप में एक मौलिक अधिकार है, जो दक्षता, पारदर्शिता, शिकायत निवारण और समयबद्ध सेवा वितरण पर आधारित है। उन्होंने एक ऐसे आधुनिक और समावेशी भारत की परिकल्पना की, जिसमें हर व्यक्ति को गरिमा, न्याय और विकास सुनिश्चित हो।

Point of View

यह स्पष्ट है कि भारत अपने चार स्तंभों के माध्यम से न केवल मानवाधिकारों को समर्थन दे रहा है, बल्कि समाज में गरिमा और न्याय के लिए ठोस कदम भी उठा रहा है। यह दृष्टिकोण हमें एक समृद्ध और समावेशी भविष्य की ओर ले जा रहा है।
NationPress
10/12/2025

Frequently Asked Questions

डॉ. पी.के. मिश्र ने मानवाधिकारों के बारे में क्या कहा?
उन्होंने कहा कि मानवाधिकार अब केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का भी हिस्सा बन चुके हैं।
भारत में गरीबी रेखा से बाहर निकलने वालों की संख्या कितनी है?
पिछले दशक में २५ करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं।
क्या सुशासन एक मौलिक अधिकार है?
जी हाँ, सुशासन दक्षता, पारदर्शिता और समयबद्ध सेवा वितरण पर आधारित एक मौलिक अधिकार है।
Nation Press