क्या देशभर की जेलों में बढ़ती सुरक्षा चूक के कारण चिंता का विषय है?
सारांश
Key Takeaways
- जेलों में बढ़ती सुरक्षा चूक को गंभीरता से लेना आवश्यक है।
- राष्ट्रीय मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की आवश्यकता है।
- डी-रेडिकलाइजेशन के लिए संगठित प्रयास जरूरी हैं।
- जेलों में भ्रष्टाचार और आंतरिक मिलीभगत की जांच होनी चाहिए।
- राष्ट्रीय सुरक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
नई दिल्ली, 10 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र भेजा है। इस पत्र में उन्होंने देशभर की जेलों में बढ़ती सुरक्षा चूक और कैदियों की गतिविधियों पर गंभीर चिंता जताई है।
उन्होंने गृह मंत्रालय से आग्रह किया है कि तुरंत एक राष्ट्रीय मानक संचालन प्रक्रिया (नेशनल एसओपी) बनाई जाए, जिससे जेल सुरक्षा और 'डी-रेडिकलाइजेशन' यानी उग्र विचारधारा से पुनर्वास की नीति को पूरे देश में एकरूप किया जा सके।
शोभा करंदलाजे ने पत्र में लिखा, "मैं आपका ध्यान कर्नाटक की जेलों में हाल ही में सामने आई खतरनाक सुरक्षा कमियों की ओर दिलाना चाहती हूं, जो जेल सुरक्षा और डी-रेडिकलाइजेशन को लेकर एक समान नेशनल पॉलिसी की तुरंत जरूरत को दर्शाती हैं। बेंगलुरु की परप्पना अग्रहारा सेंट्रल जेल से हाल ही में पता चला कि आईएसआईएस के लिए लोगों को भर्ती करने और युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के आरोप में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किया गया एक आरोपी हमीद शकील मन्ना, हाई-सिक्योरिटी वाली जेल के अंदर स्मार्टफोन का उपयोग कर रहा था। इस गैर कानूनी एक्सेस के कारण वह न्यायिक हिरासत में होने के बावजूद अपनी चरमपंथी गतिविधियां जारी रख सका, जिससे मौजूदा जेल प्रबंधन प्रणाली में गंभीर कमियां उजागर हुई हैं।"
उन्होंने बताया कि यह घटना एनआईए की पिछली खोजों के बाद हुई, जिसमें पता चला था कि एक और टेरर दोषी नजीर, जिसे उम्रकैद की सजा हुई है और जो लश्कर-ए-तैयबा का जाना-माना ऑपरेटिव है, वह बेंगलुरु सेंट्रल जेल के अंदर से ही एक टेरर नेटवर्क के लिए आइडियोलॉजिकल और ऑपरेशनल कमांड सेंटर के रूप में कार्य कर रहा था। जांच में पता चला कि नजीर ने मोबाइल फोन स्मगल किए और उनका उपयोग फंड ट्रांसफर कोऑर्डिनेट करने, आदेश देने और जेल के बाहर के ऑपरेशनों से संवाद करने के लिए किया, जिससे जेल वास्तव में टेरर कोऑर्डिनेशन का एक हब बन गई थी।
एनआईए की जांच में अंदरूनी मिलीभगत के चिंताजनक मामले भी सामने आए। जेल के साइकियाट्रिस्ट डॉ. नागराज ने कथित तौर पर कम्युनिकेशन डिवाइस स्मगल करने में मदद की। सिटी आर्म्ड रिजर्व पुलिस के असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर चांद पाशा ने कथित तौर पर रिश्वत के बदले नजीर की गतिविधियों के बारे में संवेदनशील जानकारी लीक की, और फरार आरोपी जुनैद अहमद की मां अनीस फातिमा ने नजीर के निर्देश पहुंचाने के लिए एक साधन के रूप में कार्य किया।
शोभा करंदलाजे ने कहा कि ये सभी बातें जेल प्रणाली के अंदर घुसपैठ और भ्रष्टाचार के एक गहरे और संगठित प्रणाली की ओर इशारा करती हैं, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले लोगों ने ही देश विरोधी ऑपरेशनों को बढ़ावा दिया है। जेलें, जिन्हें रिहैबिलिटेशन और सुधार के केंद्र होना चाहिए, दुख की बात है कि वे कट्टरपंथ और आइडियोलॉजिकल इंडॉक्ट्रिनेशन का अड्डा बन गई हैं। नजीर के मामले से लेकर हाल में हमीद शकील मन्ना से स्मार्टफोन मिलने तक, ऐसी घटनाओं का बार-बार होना यह साबित करता है कि सुधार गृहों के अंदर कट्टरपंथ कोई अचानक होने वाली घटना नहीं है, बल्कि यह टेररिस्ट नेटवर्क द्वारा प्रणाली की कमजोरियों का लाभ उठाने और भारत की आंतरिक सुरक्षा से समझौता करने की एक लगातार और जानबूझकर की गई कोशिश है।
शोभा करंदलाजे ने चिंता जताते हुए कहा कि यह बहुत आवश्यक है कि गृह मंत्रालय देशभर की सभी जेलों पर लागू होने वाला एक नेशनल स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाए और जारी करे। इस एसओपी में टेरर के दोषियों और संदिग्धों को आम कैदियों से अलग रखने, कम्युनिकेशन डिवाइस की स्मगलिंग का पता लगाने और उसे रोकने के लिए पूरी निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक ऑडिट, मिलीभगत को रोकने के लिए कर्मचारियों का समय-समय पर रोटेशन और जांच और विशेषज्ञों की देखरेख में स्ट्रक्चर्ड डी-रेडिकलाइजेशन प्रोग्राम प्रारंभ करने के प्रावधान शामिल होने चाहिए। स्टेट जेल डिपार्टमेंट, एनआईए और इंटेलिजेंस ब्यूरो जैसी केंद्रीय एजेंसियों के बीच रियल-टाइम इंटेलिजेंस शेयरिंग और उच्च जोखिम वाले कैदियों की निगरानी के लिए एक संस्थागत तंत्र भी होना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा फ्रेमवर्क न केवल सुधार संस्थानों की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि कानून के शासन को भी मजबूती प्रदान करेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को बनाए रखेगा। कर्नाटक में हाल की घटनाएं एक गंभीर चेतावनी हैं कि तुरंत सुधारात्मक कदम उठाए बिना, जेलों का उपयोग कट्टरपंथी विचारधाराओं और देश विरोधी योजनाओं के लिए सुरक्षित पनाहगाह के रूप में होता रहेगा। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि जेल सुरक्षा और डी-रेडिकलाइजेशन पर एक व्यापक राष्ट्रीय एसओपी जारी करने के लिए कृपया हस्तक्षेप करें और यह सुनिश्चित करें कि ऐसी कमियां समाप्त हों और हमारे आंतरिक सुरक्षा तंत्र की अखंडता से कोई समझौता न हो।