क्या 'ग्रीन हाइड्रोजन' कम-कार्बन और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तन ला सकता है?
सारांश
Key Takeaways
- ग्रीन हाइड्रोजन भारत की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन घरेलू उत्पादन और नवाचार को बढ़ावा दे रहा है।
- यह मिशन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगा।
- भारत ने वैश्विक हाइड्रोजन समुदाय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
- यह रोजगार के अवसर उत्पन्न करेगा और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाएगा।
नई दिल्ली, ११ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को दी गई जानकारी के अनुसार, 'ग्रीन हाइड्रोजन' कम-कार्बन और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तन को बढ़ावा देते हुए भारत की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति का मुख्य हिस्सा बनी हुई है।
दुनिया के सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी नवीकरणीय ऊर्जा आधार पर आधारित नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है, नवाचार को प्रोत्साहित कर रहा है और ग्रीन हाइड्रोजन और इसके उप-उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार को खोलने में मदद कर रहा है।
केंद्र के अनुसार, नेशनल हरित हाइड्रोजन मिशन (एनजीएचएम) का उद्देश्य भारत को क्लीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में वैश्विक नेता बनाना और आवश्यक क्षमता तथा इकोसिस्टम का निर्माण करना है। अगले ५ वर्षों में २०३० तक इस मिशन के तहत ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए लगभग १२५ गीगावाट नई नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और ८ लाख करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की सहायता की जाएगी।
एनजीएचएम से २०३० तक हर वर्ष लगभग ५० एमएमटी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आने की उम्मीद है। इसके अलावा, यह मिशन ६ लाख से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न करने और जीवाश्म ईंधन के आयात में १ लाख करोड़ रुपए से अधिक की कमी लाने में महत्वपूर्ण होगा।
इस मिशन के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने, घरेलू निर्माण और निर्यात को प्रोत्साहित करने, नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने और सार्वजनिक-निजी साझेदारी को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।
मिशन के संबंध में, केंद्र सरकार वैश्विक साझेदारियों का निर्माण भी कर रही है। पिछले वर्ष २०२४ में, भारत ने रॉटरडैम में वर्ल्ड हाइड्रोजन समिट में अपने पहले इंडिया पवेलियन का उद्घाटन किया, जो अंतरराष्ट्रीय हाइड्रोजन समुदाय में भारत की एंट्री का प्रतीक बना। इस कदम से भारत की स्थिति वैश्विक निवेश में एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में मजबूत हुई और देश उभरती वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में उभरा।