क्या जदयू के श्रवण कुमार नालंदा में अपनी जीत बनाए रख पाएंगे?

सारांश
Key Takeaways
- नालंदा विधानसभा का जदयू के लिए गढ़ होना।
- श्रवण कुमार की लगातार जीत का इतिहास।
- जातीय समीकरण का चुनावी नतीजों पर प्रभाव।
- नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक महत्व।
- स्थानीय मुद्दों की चुनाव में भूमिका।
पटना, 19 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा की 243 सीटों में नालंदा विधानसभा को एक उच्च प्रोफाइल सीट माना जाता है। इसका सीधा संबंध मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से है, जिनका यहां विशेष प्रभाव है। यह सीट नालंदा जिले के नूरसराय और बेन प्रखंड क्षेत्र से मिलकर बनी है, जिसमें सिलाव, बिहारशरीफ और राजगीर प्रखंड के कुछ गांव भी शामिल हैं।
नालंदा विधानसभा क्षेत्र को जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का गढ़ माना जाता है। जदयू के श्रवण कुमार यहां लगातार 7 बार चुनाव जीत चुके हैं।
हालांकि, नालंदा का राजनीतिक इतिहास अत्यंत दिलचस्प है, क्योंकि यहां पहले कांग्रेस का दबदबा था। कांग्रेस नेता श्याम सुंदर सिंह ने तीन बार नालंदा से विधायक के तौर पर जीत हासिल की थी, लेकिन 1985 के बाद कांग्रेस को यहां कोई सफलता नहीं मिली।
इसके बाद से जदयू ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाए रखा है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी इस सीट पर कभी जीत हासिल नहीं कर पाई हैं।
नालंदा विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां के प्रमुख मतदाता समुदायों में कुर्मी, पासवान और यादव जाति के वोटरों की संख्या अधिक है। इनके अलावा राजपूत, कोइरी और भूमिहार जाति के वोटरों की भी महत्वपूर्ण संख्या है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
नालंदा विधानसभा क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहां स्थित प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा नालंदा जिले में स्थित चंडी-मौ गांव, खंडहर और नालंदा म्यूजियम जैसे स्थल भारतीय पुरातात्त्विक धरोहर का अद्वितीय उदाहरण पेश करते हैं।
यहां के ऐतिहासिक स्थल जैसे ब्लैक बुद्धा, जुआफरडीह स्तूप और रुक्मिणी स्थान भी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। नालंदा जिले के सिलाव में बनने वाला खाजा भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है और इस क्षेत्र की पहचान में इसे एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
नालंदा विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक संरचना 1977 में स्थापित हुई थी, जब यह पटना जिले से अलग होकर नालंदा जिला बना था। इस क्षेत्र में जातीय राजनीति और नीतीश कुमार के प्रभाव से चुनावी समीकरणों का निर्धारण होता है।
इस बार चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है, क्योंकि उम्मीदवारों को इन जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने चुनावी अभियान को आकार देना होगा।