क्या मनीष तिवारी का मानना है कि आत्मनिर्भरता और बहु-संरेखण ही भारत के भविष्य की दिशा तय करेंगे?

सारांश
Key Takeaways
- भारत की स्वतंत्रता की शताब्दी 2047 में मनाई जाएगी।
- आत्मनिर्भरता और बहु-संरेखण आवश्यक हैं।
- राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक एकता की जरूरत है।
- जिंदल यूनिवर्सिटी वैश्विक नेतृत्व का निर्माण कर रही है।
- कॉन्क्लेव में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।
सोनीपत, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। “वर्ष 2047 में भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा और दुनिया के पहले अहिंसक संघर्ष को याद करेगा, जो विश्व इतिहास में अद्वितीय और बेमिसाल रहा है। सबसे पहले और अहम यह है कि भारत में लोकतंत्र की स्थिति बरकरार रहे। खासकर ऐसे समय में, जब भारत के आसपास के कई देश अलोकतांत्रिक सत्ता परिवर्तन के शिकार हो रहे हैं, जिसकी वजह वहां की सरकारों और युवाओं की अपूर्ण आकांक्षाओं के बीच की खाई है,” यह बात पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में आयोजित जिंदल पॉलिसी कॉन्क्लेव में अपने उद्घाटन संबोधन के दौरान कही। इस कॉन्क्लेव का विषय था- 'भारत और विश्व: विकसित भारत के लिए विचारों की शुरुआत।'
तिवारी ने कहा, “मानवजाति पहली बार दुनिया में एक साथ कई संघर्षों को घटित होते देख रही है। ऐसे में भारत को आने वाले दशकों में एक नए विश्व क्रम के आकार लेते समय अपनी दिशा तय करनी होगी। इसके लिए दो प्रमुख सूत्र हैं- पहला आत्मनिर्भरता और दूसरा बहु-संरेखण (जो कभी गुटनिरपेक्षता कहलाता था)। यह हमारे आधुनिक राष्ट्र-निर्माताओं की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि उन्होंने रणनीतिक स्वायत्तता की नींव आत्मनिर्भरता और गुटनिरपेक्षता के मार्ग पर रखी, जिसने बीते सात दशकों में भारत को मजबूती दी है।”
उन्होंने कहा, “सबसे पहले राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना आवश्यक है। दूसरा, भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में सामाजिक एकता बनाए रखना जरूरी है, जहां धर्म, भाषा, रीति-रिवाज, खानपान की परंपराओं में भिन्नता है, लेकिन सब एक सभ्यतागत धागे से बंधे हुए हैं। तीसरा, आय और अवसरों की असमानता को दूर करना होगा। जब तक हम राजनीतिक रूप से स्थिर, आंतरिक रूप से एकजुट और आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं होंगे, तब तक दुनिया में अपना वास्तविक स्थान नहीं बना पाएंगे। इसलिए मिलकर विचारों का आदान-प्रदान करना जरूरी है, ताकि भारत आने वाले वर्षों और दशकों में सबसे प्रभावशाली, सबसे शक्तिशाली और सबसे मानवीय सभ्यता बन सके।”
ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रोफेसर दबी रु श्रीधर पटनायक ने स्वागत भाषण में कहा, “हम एक ऐसी यूनिवर्सिटी हैं जो वैश्विक नेतृत्व का निर्माण करने के लिए प्रतिबद्ध है। गवर्नमेंट और पब्लिक पॉलिसी स्कूल इसका उदाहरण है, जो कठोर, साक्ष्य-आधारित ढांचे के जरिए नीति और नैतिक नेतृत्व गढ़ते हैं। तेजी से बदलती और जटिल दुनिया में सार्वजनिक नीति केवल प्रशासन का नहीं, बल्कि आकांक्षा और नवाचार का भी साधन बनना चाहिए। जेजीयू का मिशन है- नवाचार को बढ़ावा देकर, भारत और विश्व के भविष्य का निर्माण।”
जिंदल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी (जेएसजीपी) के डीन प्रो. आर. सुदर्शन ने कहा, “भारत में सार्वजनिक नीति की प्रासंगिकता आज अभूतपूर्व है। यह प्रशासनिक दायरों से निकलकर विषयों, विचारों और पहचानों की सीमाओं को पार कर चुकी है। स्वतंत्रता की शताब्दी के करीब पहुंचते भारत में नीति-निर्माण विकास की धारा को आकार दे रहा है। जेएसजीपी ने भारत में पब्लिक पॉलिसी शिक्षा की नींव रखी थी, जब यह अकादमिक क्षेत्र में नया था। आज यह संस्थान आलोचनात्मक सोच, अंतःविषयक शोध और नैतिक नेतृत्व पर आधारित एक अग्रणी केंद्र है।”
कॉन्क्लेव 2025 का उद्देश्य है- नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों, विद्वानों, उद्योग विशेषज्ञों और नीति पेशेवरों को एक साझा मंच पर लाना, ताकि विकसित भारत के लिए ठोस विचार और सामूहिक संवाद हो सके।
कार्यक्रम में कई मुख्य सत्र हुए। इनमें भारत के संविधान के भाग चार-राज्य के नीति निदेशक तत्वों की भूमिका पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू.यू. ललित का विशेष संबोधन शामिल था।
समापन टिप्पणी प्रो. (डॉ.) नेमेश किल्लेमसेट्टी, जिंदल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी ने दी।
दो दिवसीय इस नीति-संवाद में कई पैनल चर्चाएं होंगी, जिनमें अकादमिक, विशेषज्ञ और विचारक हिस्सा लेंगे। चर्चाओं में शामिल विषयों में निर्वाचन सुधार: भारत का शक्ति खेल, ऊर्जा क्रांति व पर्यावरण पुनर्जीवन के लिए भारत का ग्रीनप्रिंट, शहरी शासन का कायाकल्प, और मीडिया-मनोरंजन परिदृश्य पर बहस शामिल है।
समापन सत्र में “वी द नेशन बिल्डर्स” विषय पर शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग में संयुक्त सचिव आर्मस्ट्रांग पामे ने उद्बोधन दिया।