क्या सीनेट चुनाव बहाल होने तक संघर्ष जारी रहेगा? पंजाब विश्वविद्यालय बचाओ मोर्चा
सारांश
Key Takeaways
- सीनेट चुनाव की तारीख की मांग
- छात्रों का प्रदर्शन जारी रहेगा
- 20 नवंबर को बैठक की योजना
- पारदर्शिता की आवश्यकता
- राजनीतिक प्रतिनिधियों का सम्मेलन
चंडीगढ़, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के छात्र लगातार सीनेट चुनाव की तारीख की घोषणा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि तारीख की घोषणा होने के बाद ही प्रदर्शन समाप्त किया जाएगा।
इसी सिलसिले में 'पंजाब विश्वविद्यालय बचाओ मोर्चा' ने शनिवार को आगामी कार्ययोजना की घोषणा के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। शुरुआत में मोर्चा ने 10 तारीख के कार्यक्रम के दौरान कुप्रबंधन और समय की कमी के लिए खेद जताया, जिसके चलते कुछ सहभागी संगठन मंच से अपने विचार प्रस्तुत नहीं कर सके।
छात्र नेताओं ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि लगातार दो सप्ताह के विरोध प्रदर्शन के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन की प्रतिक्रिया उदासीन और असंतोषजनक रही है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उपराष्ट्रपति ने अभी तक सीनेट चुनावों के कार्यक्रम को मंजूरी नहीं दी है, जो प्रशासन की ओर से निरंतर उदासीनता को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि इस निरंतर निष्क्रियता को देखते हुए मोर्चा ने गोल्डन चांस और मेडिकल-केस परीक्षाओं को छोड़कर आगामी अंतिम सेमेस्टर परीक्षाओं का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।
मोर्चा ने बताया कि आंदोलन के अगले कदमों पर चर्चा के लिए 20 नवंबर को पंजाब स्तर के विभिन्न संगठनों की एक बैठक होगी। इसके अलावा 26 से 30 नवंबर के बीच बुद्धिजीवियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन आयोजित होने की संभावना है, जहाँ संघर्ष की व्यापक दिशा पर चर्चा की जाएगी। मोर्चा के अनुसार अधिकारी छात्रों को कोई विश्वसनीय आश्वासन दिए बिना 25 नवंबर तक किसी भी ठोस घोषणा को टालने का प्रयास कर रहे हैं।
मोर्चा ने ऐलान किया कि जब तक सीनेट चुनाव विधिवत बहाल नहीं हो जाते और एक पारदर्शी कार्यक्रम की आधिकारिक घोषणा नहीं होती, तब तक संघर्ष दृढ़ता और बिना किसी समझौते के जारी रहेगा।
यह विरोध तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने 28 अक्टूबर को एक अधिसूचना जारी कर पंजाब यूनिवर्सिटी की दो मुख्य शासी संस्थाओं (सीनेट और सिंडिकेट) को भंग कर दिया। सरकार ने इनकी जगह एक नया बोर्ड ऑफ गवर्नर्स बनाने की घोषणा की, जिसमें ज्यादातर सदस्य केंद्र द्वारा नामित किए जाने थे। इस फैसले के बाद पंजाबभर में विरोध की लहर दौड़ गई। छात्रों, शिक्षकों और राजनीतिक दलों ने इसे राज्य की सबसे पुरानी और स्वायत्त यूनिवर्सिटी पर नियंत्रण करने की कोशिश बताया।