क्या सरकार लाती है मनमाने कानून जो असंवैधानिक हैं?: हुसैन दलवई

सारांश
Key Takeaways
- संविधान की सुरक्षा आवश्यक है।
- हुसैन दलवई की चिंताएं महत्वपूर्ण हैं।
- गाजा की स्थिति पर जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
- राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।
- इंसानियत सर्वोपरि है।
मुंबई, 21 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे मुख्यमंत्री, मंत्री और प्रधानमंत्री को हटाने के प्रस्ताव वाले विधेयक पर कांग्रेस नेता हुसैन दलवई ने कहा कि आज सबसे बड़ा खतरा संविधान को तोड़ने की लगातार कोशिश है।
कांग्रेस नेता हुसैन दलवई ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान कहा कि अगर कोई विधेयक संविधान के विरुद्ध है, तो उसके खिलाफ नारेबाजी बिल्कुल जायज है। जिस तरह से सरकार अपनी दलीलें पेश करती है और मनमाने कानून लाती है, वह असंवैधानिक है। आज सबसे बड़ा खतरा संविधान को तोड़ने की लगातार कोशिश है। वे बाहरी आवरण तो रखते हैं, लेकिन उसकी आत्मा को खोखला कर देते हैं। वे बाबा साहेब अंबेडकर का नाम तो लेते हैं, लेकिन उनका असली मकसद उनके बनाए संविधान को ही नष्ट करना है।
हुसैन दलवई ने गाजा में हो रही हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघनों पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की चुप्पी पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन एक ऐतिहासिक देश है, जबकि इजरायल को एक आर्टिफिशियल देश के रूप में बनाया गया था। भारत पहला देश था, जिसने पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में फिलिस्तीन को मान्यता दी थी। गांधी जी भी फिलिस्तीन
उन्होंने कहा कि गाजा में रोजाना अत्याचार हो रहे हैं। वहां बच्चों की हत्याएं, महिलाओं पर हमले और मानवीय सहायता पहुंचाने वाले कार्यकर्ताओं पर गोलियां चलाई जा रही हैं। अगर भागवत को सेवा से इतना ही प्रेम है, तो गाजा जाकर मदद करें। यह सिर्फ मुस्लिम या हिंदू का मुद्दा नहीं है, यह इंसानियत का सवाल है। नेतन्याहू आज के समय के हिटलर की तरह व्यवहार कर रहे हैं और बाकी अरब देशों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है।
दलवई ने सीएसडीएस प्रमुख संजय कुमार के खिलाफ 'गलत' आंकड़ों के लिए दर्ज एफआईआर पर कहा कि मेरे विचार से संजय कुमार ने गलती की है। जब उन्हें जानकारी मिली तो उन्होंने गलती स्वीकार की और माफी मांगी।
उन्होंने शशि थरूर द्वारा कांग्रेस की नीति को चुनौती देने पर कहा कि शशि थरूर एक बुद्धिमान और अनुभवी नेता हैं, लेकिन पार्टी की नीति के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयान देना अनुचित है। पार्टी के भीतर अगर कोई मतभेद हैं, तो उन्हें आंतरिक मंच पर रखा जाना चाहिए। कांग्रेस की नीति को चुनौती देना सही तरीका नहीं है।