क्या एसआईआर के दौरान बीएलओ पर काम का दबाव डाला गया है? : प्रियंका चतुर्वेदी
सारांश
Key Takeaways
- प्रियंका चतुर्वेदी ने बीएलओ पर काम का दबाव डालने की बात की।
- मतदाता सूची के पुनरीक्षण में पारदर्शिता का अभाव है।
- हार के बाद समीक्षा बैठकें आवश्यक होती हैं।
- बीएलओ के आत्महत्या के मामले चिंता का विषय हैं।
- मतदाता अधिकारों की रक्षा के लिए राजनीतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस की समीक्षा बैठक में उत्पन्न विवाद पर अपनी अनभिज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे इस विषय में कोई विशेष जानकारी नहीं है।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा समीक्षा बैठक बुलाई गई थी, जिसमें कई नेता उपस्थित थे। आमतौर पर हार के बाद इस तरह की बैठकें बुलाई जाती हैं, ताकि हार के कारणों पर चर्चा की जा सके। जब किसी पार्टी की तरफ से ऐसी बैठकें होती हैं, तो नेता भावुक हो जाते हैं, क्योंकि वे चुनाव से जीत की उम्मीद रखते हैं। जब परिणाम उनके अनुमान के विपरीत होते हैं, तो उनका भावुक होना स्वाभाविक है।
उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से इस तरह की बैठकों को बुलाने की समर्थक रही हूं, क्योंकि जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ऐसी बैठकें आयोजित करता है, तो इसमें चुनाव परिणामों पर विस्तृत चर्चा होती है। चुनाव परिणाम से जुड़े हर पहलू पर गहन चर्चा की जानी चाहिए, ताकि किसी भी त्रुटि की पुनरावृत्ति न हो सके। किसी भी चुनाव में हार के बाद इस प्रकार की बैठकें आवश्यक हैं, ताकि सभी नेता खुलकर अपने विचार रख सकें।
राज्यसभा सांसद ने कहा कि हार के बाद समीक्षा बैठक से हमें अपनी कमियों का पता चलता है। इसके पश्चात, हम इन कमियों को सुधारने के लिए कदम उठा सकते हैं।
उन्होंने मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के संदर्भ में कहा कि हमें इस प्रक्रिया से कोई आपत्ति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र का मामला है। लेकिन, वर्तमान में जिस प्रकार से इस प्रक्रिया का निष्पादन किया जा रहा है, उससे हमें आपत्ति है। पश्चिम बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान कई वैध मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं, ताकि उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित किया जा सके, जिसे हम स्वीकार नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की तरफ से किए जा रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के दौरान बीएलओ पर काम का दबाव डाला जा रहा है। उन्हें निश्चित समय सीमा में अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए कहा गया है, जिससे उन पर काम का दबाव बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग से यह पूछना आवश्यक हो जाता है कि ऐसी क्या मजबूरी है कि बीएलओ पर इतना दबाव डाला जा रहा है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बीएलओ आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में चुनाव आयोग से यह पूछना ज़रूरी है कि आखिर उन्होंने बीएलओ को कौन से कार्य सौंपे हैं।
शिवसेना (यूबीटी) नेता ने कहा कि हम लोगों के मताधिकार को चुनावी मुद्दा नहीं बनने देंगे। लेकिन, वर्तमान में जिस प्रकार से सत्तारूढ़ दल इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है, हम उसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देंगे। मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण से वैध मतदाताओं को भी मतदान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर कई बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी और शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे अपनी बात रख चुके हैं। वे कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस में बता चुके हैं कि किस प्रकार मतदाता सूची पुनरीक्षण की आड़ में वैध मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। मेरा सीधा सवाल है कि क्या इस तरह की स्थिति को किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत स्वीकार किया जा सकता है।
उन्होंने दावा किया कि अब मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर आम लोगों के मन में भी कई सवाल उठ रहे हैं। चुनाव आयोग के सामने यह चुनौती है कि वह कैसे लोगों को यह विश्वास दिलाए कि यह प्रक्रिया उनके हित में है।