क्या वंदे मातरम को मुस्लिमों के खिलाफ बताना देश को बांटने की मानसिकता है?: सपा सांसद अवधेश प्रसाद
सारांश
Key Takeaways
- वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो चुके हैं।
- सभी धर्मों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।
- अवधेश प्रसाद का बयान देश की एकता पर जोर देता है।
- लोकतंत्र की मजबूती के लिए सभी की जिम्मेदारी है।
- संसद में सामाजिक मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
नई दिल्ली, 9 दिसंबर (आईएएएस)। संसद के शीतकालीन सत्र में भारत के राष्ट्रीय गीत के 150 साल पूरे होने के अवसर पर विशेष चर्चा चल रही है। इस दौरान आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजियां भी तेज हो गई हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद ने मंगलवार को कहा कि देश की आजादी में सभी धर्म के लोगों का योगदान है।
सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए कहा, "देश को आजादी दिलाने में सभी देशवासियों ने अपना योगदान दिया। सभी धर्मों के लोगों ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी है। हमारा जनपद, जिसका नाम अब अयोध्या हो गया है, पहले फैजाबाद था। फैजाबाद की कारागार में अशफाकुल्ला खान को 27 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। जेल के दौरान जब उनकी मां मिलने गई, तो उन्होंने मां से मिलने से इनकार कर दिया और कहा कि अब वे भारत माता से मिलेंगे।
अवधेश प्रसाद ने बताया, "अशफाकुल्ला खान ने फांसी के बाद अपनी अस्थियों को आजाद हिंदुस्तान की माटी में दफनाने की बात कही थी। तमाम स्वतंत्रता सेनानियों के अंदर यह भावना थी। कई लोगों ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। उनका ही जज्बा था, जिसके तहत आज हम वंदे मातरम की 150वीं जयंती मना रहे हैं। ऐसे में यह कहना कि वंदे मातरम मुसलमानों के खिलाफ था, गलत है। ऐसी मानसिकता देश को बांटने की है। अनेकता में एकता के सूत्र को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।"
संसद में चुनाव सुधारों पर हो रही चर्चा को लेकर उन्होंने कहा, "लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए जितनी जिम्मेदारी सत्ता की है, उतनी ही जिम्मेदारी विपक्ष की भी है। सत्ता और विपक्ष एक सिक्के के दो पहलू हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने देश के करोड़ों दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और देश के सभी सामान्य नागरिकों को मौलिक अधिकार दिया। उसमें सबसे कीमती अधिकार कोई है, तो वो मतदान का है। भाजपा इसे समाप्त करके लोकतंत्र को कमजोर करना चाहती है। वह संविधान की आत्मा को चोट पहुंचाना चाहती है।"
उन्होंने कहा, "देश के कई राज्यों में हो रहे एसआईआर में बहुत सी शिकायतें मिल रही हैं। बीएलओ आज आत्महत्या कर रहे हैं। इस ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा के लिए संसद से बड़ा प्लेटफॉर्म नहीं हो सकता है। संसद में किसान, बेरोजगारी और कानून व्यवस्था जैसे जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।"