क्या मुनव्वर राणा की शायरी में मां की मोहब्बत महकती रही?
सारांश
Key Takeaways
- मां का प्यार सबसे बड़ा होता है।
- शायरी के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करना संभव है।
- कठिन समय में भी मां का याद आना एक सच्चाई है।
- राजनीतिक मुद्दों पर विचार व्यक्त करना आवश्यक है।
- संस्कृति और साहित्य का आपस में गहरा संबंध है।
नई दिल्ली, 25 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। ‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई।’ ये शब्द उस शायर के हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी के हर पन्ने पर ‘मां’ की मोहब्बत को उकेरा, जिसे हर भाषा, धर्म और क्षेत्र में सबसे बड़ा स्थान मिला है। यह शायर हैं, अपनी अद्वितीय आवाज और शायरी की शैली के लिए मशहूर मुनव्वर राणा।
26 नवंबर 1952 को जन्मे मुनव्वर राणा उत्तर प्रदेश के रायबरेली के निवासी थे, लेकिन उनका संबंध लखनऊ और कोलकाता से भी रहा। उनका बचपन गरीबी में बीता। घर में कभी चूल्हा जलता था, कभी नहीं। उनके पिता ने ट्रक चलाया और कई बार कलकत्ता से इलाहाबाद और लखनऊ के बीच यात्रा की। उनकी मां ने घर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया, जिससे मुनव्वर के अंदर प्यार और स्नेह का भाव पनपा, जिसे उन्होंने अपनी शायरी में व्यक्त किया।
एक इंटरव्यू में मुनव्वर ने बताया था, “बचपन में मुझे नींद में चलने की आदत थी। मेरी मां इस डर से कुएं के पास बैठती थीं कि कहीं मैं गिर न जाऊं। वह रात भर रोती थीं और कुएं से कहती थीं कि मेरे बेटे को डुबोना मत।” इस प्रकार, उनकी मां से एक गहरा संबंध बन गया, जिसने उन्हें यह सिखाया कि सभी ‘मां’ एक जैसी होती हैं।
मुनव्वर ने कहा था, “लबों पर कभी बददुआ नहीं होती, बस एक मां है जो कभी खफा नहीं होती। इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है।” जब मुनव्वर की आंखें चमकती थीं, तो ऐसा लगता था जैसे कोई नया शेर जुबां पर आने वाला है। उन्हें 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कठिन समय में भी वे अपनी मां को नहीं भूले। उन्होंने कहा, “सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जान कहते हैं, हम तो इस मुल्क की मिट्टी को मां कहते हैं।” यह शेर उस समय का है जब विवादों ने उन्हें घेर लिया था। मुनव्वर ने 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी वापस कर दिया था।
शायरी के जरिए ‘मां’ का सही अर्थ बताते हुए, वे राजनीतिक टिप्पणियों में भी शामिल हो गए। उनके विवादों में किसान आंदोलन से जुड़े पोस्ट और राम मंदिर पर उठाए गए सवाल शामिल थे। 2022 में राजनीति पर उनके विचारों ने और विवाद बढ़ाए।
उन्होंने कहा था, “मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता, अब इससे ज्यादा मैं तिरा हो नहीं सकता।” दिसंबर 2022 में उन्होंने फेसबुक पर लिखा, “बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है, न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है।”
14 जनवरी 2024 को मुनव्वर राणा का निधन हो गया।